Rashtriya Shiksha Niti 1986 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986

सभी पाठकों को मेरा नमस्कार! ,आज हम इस पोस्ट के माध्यम से Rashtriya Shiksha Niti 1986 की पृष्ठभूमि के बारे में, इसके 12 भागों में शिक्षा के लिए किए गए प्रमुख प्रावधानों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही हम लोग राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 (Rashtriya Shiksha Niti 1986) के मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करेंगे। कार्य योजना (plan of action) क्या है इसको भी समझेंगे।Rashtriya Shiksha Niti 1986

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Rashtriya Shiksha Niti की घोषणा मई 1986 में की गई। इस नीति को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इस समय भारत में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी जी थे। 

यह भारत की पहली ऐसी नीति है जिसमें नीति के साथ-साथ इसके क्रियान्वयन के लिए एक पूरी योजना (Plan of action) प्रस्तुत की गई और साथ ही उसके लिए पर्याप्त संसाधन जुटाए गए।

नवंबर 1986 में कार्य योजना (plan of Action, POA) नामक दस्तावेज प्रकाशित किया गया । यह कार्य योजना 24 भागों में विभाजित है।

अभी तक भारत में कुल तीन राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां आ चुकी हैं- Rashtriya Shiksha Niti 1968 , Rashtriya Shiksha Niti 1986 , Rashtriya Shiksha Niti 2020 मोरारजी देसाई की सरकार ने सन् 1979 में एक नई शिक्षा नीति की घोषणा की थी इस नीति के लागू होने से पहले ही उनकी सरकार  गिर गई।

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Rashtriya Shiksha Niti 1986 की पृष्ठभूमि-

भारत देश सदियों तक विदेशी ताकतों के अधीन रहा है जिसके कारण भारत की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गयी थी इस शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिय स्वन्त्रन्ता के बाद अनेक नीतियों का निर्माण किया गया लेकिन समय व सरकार बदलने के साथ इन नीतियों को सही से लागू नहीं किया जा सका। परिणाम यह रहा कि सरकार बदलते ही नीतियों में भी परिवर्तन देखा गया।

1968 में केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की थी कई प्रान्तों में 10+2+3 शिक्षा संरचना लागू हो गई थी, कई प्रान्तों ने अपने- अपने ढंग से त्रिभाषा सूत्र लागू कर दिया था, कई प्रान्तों में कृषि, व्यवसायिक एवं तकनीकी शिक्षा, विज्ञान शिक्षा और वैज्ञानिक शोधों के लिए विशेष प्रावधान किए जाने लगे थे, प्रायः सभी प्रान्तों में परीक्षा प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया शरू हो गई थी आधुनिकीकरण के नाम पर विज्ञान एवं गणित की शिक्षा अनिवार्य कर दी गई थी और शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए कदम उठाये जाने लगे थे। परन्तु 1977 में केन्द्र में जनता दल सत्तारूढ़ हो गया और मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री बने।

मोरारजी देसाई ने 10+2+3 शिक्षा संरचना के स्थान पर 8+4+3 शिक्षा संरचना का विचार प्रस्तुत किया। परिणाम यह हुआ कि तत्कालीन केन्द्रीय शिक्षा मन्त्री श्री प्रताप चन्द्र चन्दर ने कुछ शिक्षाविदों और सांसदों के सहयोग से एक नई शिक्षा नीति तैयार की और 1979 में उसकी घोषणा कर डाली। इसे अभी लागू भी नहीं किया जा सका था कि 1980 में केन्द्र में पुनः कांग्रेस सत्ता में आ गई और श्रीमती इन्दिरा गाँधी पुनः प्रधानमन्त्री बनीं। इन्दिरा गाँधी ने पुनः राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अनुपालन पर जोर दिया। इसी बीच इन्दिरा गाँधी की हत्या कर दी गई, उनके स्थान पर राजीव गाँधी को प्रधानमन्त्री बनाया गया।

               युवा प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने हर क्षेत्र में आन्दोलनकारी कदम उठाने शुरू किए, शिक्षा के क्षेत्र में भी। राजीव गांधी ने सन् 1985 में शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया। उन्होने कहा कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था राष्ट्र की माँगों को पूरा करने में असमर्थ है इनका पुनर्निरीक्षण होना चाहिए और पुनगर्ठन होना चाहिए। 

                इस बार न तो किसी आयोग का गठन किया गया और न ही किसी समिति का। सर्वप्रथम सरकार ने तत्कालीन शिक्षा का सर्वेक्षण कराया और उसे शिक्षा की चुनौतीः एक नीतिगत आयाम (Challenge of Education: A Policy Perspective) नाम से अगस्त, 1983 में प्रकाशित किया। इस दस्तावेज में भारतीय शिक्षा की 1951 से 1983 तक की प्रगति यात्रा का सांख्यिकीय विवरण, उसकी उपलब्धियों एवं असफलताओं का यर्थाथ चित्रण और उसके गुण-दोषों का सम्यक् विवेचन किया गया है। 

सरकार ने इस दस्तावेज को जनता के हाथों में पहुँचाया और इस पर देशव्यापी बहस शुरू की। सभी प्रान्तों के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से सुझाव प्राप्त हुए। केन्द्रीय सरकार ने इन सुझावों के आधार पर एक नई शिक्षा नीति तैयार की और उसे संसद के बजट अधिवेशन 1986 में प्रस्तुत किया। संसद में पास कराने के बाद इसे मई 1986 में प्रकाशित किया गया। इस शिक्षा नीति की घोषणा के कुछ महिनो बाद इसकी कार्य योजना (Plan of Action) नामक दस्तावेज प्रकाशित किया गया।

यह भारत की पहली ऐसी नीति है जिसमें नीति के साथ-साथ इसके क्रियान्वयन के लिए एक पूरी योजना (Plan of action) प्रस्तुत की गई और साथ ही उसके लिए पर्याप्त संसाधन जुटाए गए। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की सिफारिशें (Rashtriya Shiksha Niti 1986)-

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की सिफारिश से इस प्रकार हैं-

NEP 1986 को 12 भागों में विभाजित किया गया है –

1)  भूमिका (Introductory)

2)  शिक्षा का सार और उसकी भूमिका (The Essence and Role of Education) 

3)  राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली (National Education System) 

4)  समानता के लिए शिक्षा (Education for Equality) 

5)  विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन (Re-organizing of Education at Different Stages) 

6)  तकनीकी एवं प्रबंध शिक्षा (Technical and Management Education) 

7)  शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाना (Making the System Work) 

8)  शिक्षा की विषयवस्तु और प्रक्रिया को नया मोड़ देना (Reorienting The Content and Process of Education) 

9)  शिक्षक (Teacher) 

10)  शिक्षा का प्रबंध (Management of The Education) 

11)  संसाधन तथा समीक्षा (Resources and Reviews) 

12)  भविष्य (Future) 

Note- यदि आप शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (RTE Act 2009) पर मेरे द्वारा लिखे गए आर्टिकल को पढ़ना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

भाग-1  भूमिका (Introductory) 

इस भाग में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के बाद भारतीय शिक्षा में क्या-क्या बदलाव आए, क्या सुधार हुए और कौन-कौन सी कमियां अभी बाकी है पर चर्चा की गई है। जैसे-

  • सभी प्रान्तों में 10+2+3 शिक्षा संरचना स्वीकार कर ली गई है।
  • प्राथमिक शिक्षा 90% बच्चों को उपलब्ध है।
  • माध्यमिक स्तर पर विज्ञान और गणित की शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया है।
  • उच्च शिक्षा के स्तर को उठाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
  • साथ ही यह भी स्वीकार किया गया कि इस नीति के अधिकांश सुझाव जमीनी तौर पर लागू नहीं हो सके हैं। देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ने के कारण लोकतन्त्रीय लक्ष्यों की प्राप्त में अनेक अड़चनें आ रही हैं हमें भविष्य में अनेक समस्याओं का सामना करना होगा अतः आवश्यक है कि वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार शिक्षा की नई नीति तैयार करें और उसे क्रियान्वित करें।

भाग-2  शिक्षा का सार और उसकी भूमिका (The Essence and Role of Education) 

इस भाग में  शिक्षा के महत्व , शिक्षा क्यों आवश्यक है बताने का प्रयास किया गया है-

सबके लिए शिक्षा हमारे भौतिक एवं अध्यात्मिक विकास की बुनियादी आवश्यकता है। शिक्षा मनुष्य को सुसंस्कृत बनाती है और संवेदनशील बनाती है जिससे राष्ट्रीय एकता विकसित होती है। यह मनुष्य में स्वतन्त्र चिन्तन एवं सोच समझ की क्षमता उत्पन्न करती है जिससे हम लोकतन्त्रीय लक्ष्यों (स्वतन्त्रता, समानता, भ्रातृत्व, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और न्याय) की प्राप्ति कर सकते हैं, आर्थिक विकास कर सकते हैं और अपने वर्तमान एवं भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। शिक्षा वास्तव में एक उत्तम निवेश (Investment) है।

भाग-3  राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली (National Education System) 

  • बिना किसी भेदभाव के एक निश्चित स्तर तक सभी बालकों को शिक्षा के समान अवसर दिए जाएं।
  • पूरे देश में समान शिक्षा संरचना 10+2+3 लागू होनी चाहिए।
  • प्रथम 10 वर्ष की शिक्षा की ऐसी आधारभूत पाठ्यचर्या तैयार होनी चाहिए जिसके द्वारा राष्ट्रीय मूल्यों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास किया जा सके।
  • प्रत्येक स्तर की शिक्षा के लिए न्यूनतम अधिगम स्तर (Minimum level of learning) निश्चित होना चाहिए।

 भाग-4  समानता के लिए शिक्षा (Education for Equality) 

सभी वर्गों को शिक्षा का समान अधिकार प्राप्त हो। शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त विषमताओं को दूर कर महिलाओं , अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों , पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों, विकलांगों और प्रौढ़ की शिक्षा के लिए विशेष प्रयत्न किए जाने चाहिए। क्योंकि शिक्षा के ही माध्यम से व्यक्ति अपने अधिकारों को प्राप्त कर सकता है अथवा न मिलने पर कानून का सहारा लेकर सम्मान से जीवित रह सकता है।

भाग-5  विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनर्गठन (Re-organizing of Education at Different Stages) 

शिशुओं की देखभाल और शिक्षा-

बच्चों के विकास के विभिन्न पहलुओं को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता । पौष्टिक भोजन व स्वास्थ्य को और बच्चों के सामाजिक, मानसिक, शारीरिक नैतिक और भावात्मक विकास को समेकित रूप में ही देखना होगा। इस दृष्टि से शिशुषों की देखभाल और शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा और इसे जहां भी संभव हो समेकित बाल विकास सेवा कार्यक्रम (Integrated Child Development Scheme -ICDS) के साथ जोड़ा जाएगा। प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण के संदर्भ में शिशुओं की देखभाल के केन्द्र खोले जाएंगे ।

प्रारंभिक शिक्षा-

दो बातों पर विशेष बल दिया जाएगा-

  • 14 वर्ष की अवस्था तक के सभी बच्चों को विद्यालयों में भर्ती और उनका विद्यालय में टिके रहना
  • शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार

बाल केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाया जाएगा और शिक्षा की व्यवस्था में से शारीरिक दंड को सर्वथा हटा दिया जाएगा

विद्यालय में सुविधाएं-

प्राथमिक विद्यालयों में आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था की जाए‌गी। इनमें किसी भी मौसम में काम देने लायक कम से कम दो बड़े कमरे, आवश्यक खिलौने, ब्लैकबोर्ड, नक्शे, चार्ट और अन्य शिक्षण सामग्री शामिल हैं। हर स्कूल में कम से कम दो शिक्षक होंगे, जिनमें एक महिला होगी । यथासंभव जल्दी ही प्रत्येक कक्षा के लिए एक-एक शिक्षक की व्यवस्था की जाएगी। पूरे देश में प्राथमिक विद्यालयों की दशा को सुधारने के लिए एक अमिक अभियान शुरू किया जाएगा जिसका सांकेतिक नाम “आपरेशन ब्लैक बोर्ड” होगा।

अनौपचारिक शिक्षा-

ऐसे बच्चे जो बीच में स्कूल छोड़ गए हैं या जो ऐसे स्थान पर रहते हैं जहां स्कूल नहीं है या जो काम में लगे हैं और वह लड़कियां जो दिन के स्कूल में पूरे समय नहीं जा सकती हैं इन सबके लिए एक विशाल और व्यवस्थित अनौपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम चलाया जाएगा।

गति निर्धारक विद्यालय- नवोदय विद्यालय

जिन बच्चों में विशेष प्रतिभा या अभिरुचि हो उन्हें अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराकर अधिक तेजी से आगे बढ़ाने के अवसर दिए जाने चाहिए उनकी आर्थिक स्थिति जैसी भी हो उनको ऐसे अवसर मिलने चाहिए इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए देश के विभिन्न भागों में गति निर्धारक विद्यालयों की स्थापना की जाएगी।

खुला विश्वविद्यालय और दूरस्थ अध्ययन-

उच्च शिक्षा के लिए अधिक अवसर देने और शिक्षा को जनतांत्रिक बनाने की दृष्टि से खुला विश्वविद्यालय की प्रणाली शुरू की गई है। इन उद्देश्यों के लिए 1985 में स्थापित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय [Indira Gandhi National Open University (IGNOU)] को सुदृढ़ किया जाएगा।

डिग्री को नौकरी से अलग करना-

डिग्री को नौकरी से अलग करने की योजना उन सेवाओं में शुरू की जाएगी जिनमें विश्वविद्यालय की डिग्री आवश्यक नहीं होनी चाहिए। जिससे उन प्रत्याशियों को न्याय मिलेगा जिनके पास किसी विशेष काम को करने की क्षमता तो है लेकिन उन्हें वह काम इसलिए नहीं मिल सकता क्योंकि उसके लिए स्नातक डिग्री की आवश्यकता है।

भाग-6  तकनीकी एवं प्रबंध शिक्षा (Technical and Management Education) 

इस भाग में तकनीकी और प्रबंधन शिक्षा के महत्व को स्पष्ट किया गया है और इसकी समुचित व्यवस्था पर बल दिया गया है।

भाग-7  शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाना (Making the System Work) 

इस भाग में शिक्षा के प्रशासनिक तंत्र को सक्रिय बनाने, शिक्षकों की जवाबदेही निश्चित करने और शिक्षार्थियों को कर्तव्य बोध कराने पर बल दिया गया है।

 

भाग-8  शिक्षा की विषयवस्तु और प्रक्रिया को नया मोड़ देना (Reorienting The Content and Process of Education) 

  • सांस्कृतिक मूल्यों और वैज्ञानिक सोच में समन्वय करने पर बल दिया गया है
  •  मूल्य की शिक्षा और भारतीय भाषाओं के विकास के साथ-साथ गणित और विज्ञान की शिक्षा पर बल दिया गया है।
  • पर्यावरणीय शिक्षा को शिक्षा की पूरी प्रक्रिया में समाहित किया जाए
  •  खेल और शारीरिक शिक्षा पर बल
  •  परीक्षा प्रणाली एवं मूल्यांकन प्रक्रिया में सुधार के लिए सुझाव दिए हैं। जैसे- अंकों के स्थान पर ग्रेड सिस्टम , माध्यमिक स्तर पर semester system, सतत एवं व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया का विकास किया जाए
  • कार्य अनुभव (Work experience)

भाग-9  शिक्षक (Teacher) 

शिक्षकों का वेतन मान बढ़ाने और सेवा शर्तों को आकर्षक बनाने की बात कही गई है और शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार के सुझाव दिए गए हैं ताकि शिक्षा का विकास हो सके।

शिक्षक शिक्षा- अध्यापकों की शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है और इसके सेवापूर्व और सेवाकालीन अंशों को अलग नहीं किया जा सकता। जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान (DIET) स्थापित किए जाएंगे जिनमें प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों और अनौपचारिक शिक्षा तथा प्रौढ़ शिक्षा के कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था होगी। इन संस्थाओं की स्थापना के साथ ही घटिया प्रशिक्षण संस्थानों को बंद किया जाएगा। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) को समर्थ और साधन दिए जाएंगे जिससे यह अध्यापक शिक्षा का मार्गदर्शन कर सके।

भाग-10  शिक्षा का प्रबंध (Management of The Education)-

शिक्षा में प्रशासन के विकेंद्रीकरण पर बल दिया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय शिक्षा सेवा (Indian Education Service), राज्य स्तर पर प्रांतीय शिक्षा सेवा (Provincial Education Service) और जिला स्तर पर जिला शिक्षा बोर्डो के गठन की बात कही गई है।

भाग-11 संसाधन तथा समीक्षा (Resources and Reviews)-

Rashtriya Shiksha Niti 1986 को लागू करने के लिए एक बड़ी धनराशि की आवश्यकता होगी। अतः प्रत्येक प्रस्तावित कार्य के लिए अनुमानित धनराशि आवंटित करने की व्यवस्था की जाएगी । राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में यह निर्धारित किया गया था कि शिक्षा पर होने वाले निवेश को धीरे-धीरे बढ़ाया जाएगा ताकि वह यथाशीघ्र राष्ट्रीय आय के 6% तक पहुंच सके लेकिन अब तक इस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाई है। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाएगा की शिक्षा पर निवेश आठवीं पंचवर्षीय योजना के बाद से राष्ट्रीय आय के 6 प्रतिशत से सर्वदा अधिक रहे।

समीक्षा– नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के विभिन्न पहलुओं के कार्यान्वयन की समीक्षा प्रत्येक 5 वर्षों में अवश्य की जाएगी कार्यान्वयन की प्रगति और समय-समय पर उभरती हुई प्रवृत्तियों की जांच करने के लिए मध्यावधि मूल्यांकन भी होंगे।

भाग-12  भविष्य (Future) 

भारत सरकार ने सार्वभौमिक शिक्षा के उद्देश्य हेतु सभी के द्वार तक शिक्षा की अलख जगाने का प्रयास किया है यह विश्वास प्रकट किया है कि हम निकट भविष्य में शतप्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे और हमारे देश के उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति सर्वोत्तम स्तर के होंगे।

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के मुख्य बिंदु (Main Points of Rashtriya Shiksha Niti 1986) 

  1. शिक्षा प्रशासन का विकेंद्रीकरण किया गया
  2. शिक्षा की व्यवस्था के लिए पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था की गई- इस नीति के भाग 11 में कहा गया कि केंद्र अपने बजट में शिक्षा पर 6% खर्च का प्रावधान करेगा साथ ही प्रत्येक स्तर पर जन सहयोग को प्रोत्साहित करेगा।
  3. संपूर्ण देश में 10+2+3 शिक्षा संरचना लागू होगी।
  4. प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा पूरे देश के लिए समान होगी, इसके लिए एक आधारभूत पाठ्यचर्या (core curriculum) होगी ।
  5. +2 पर प्रतिभाशाली छात्राओं को विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए तैयार किया जाएगा और सामान्य छात्राओं को उनकी रुचि एवं योग्यता के अनुसार व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाएगी। और यह प्रयत्न किया जाएगा की 1995 तक इस व्यावसायिक वर्ग में 25% छात्राएं शिक्षा ग्रहण करें।
  6. इस शिक्षा नीति में सांस्कृतिक संरक्षण एवं आधुनिकीकरण में समन्वय पर बल दिया गया है। शिक्षा के सभी स्तरों पर एक तरफ सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों की शिक्षा और दूसरी तरफ गणित विज्ञान एवं कंप्यूटर प्रयोग की शिक्षा पर बल दिया गया है।
  7. Rashtriya Shiksha Niti 1986 पूर्व प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था करने की बात करती है। शिशुओं के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर ध्यान देने उनके भोजन, वस्त्र, सफाई और पर्यावरण पर ध्यान देने उनके खेलकूद एवं व्यायाम की उचित व्यवस्था करने की बात करती है।
  8. प्राथमिक शिक्षा को सर्व सुलभ बनाया जाएगा अभी 90% बच्चों को 1 किलोमीटर की दूरी पर प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध है शेष 10% को 1990 तक उपलब्ध करा दिए जाएंगे।
  9. 1995 तक 11 से 14 आयु वर्ग के शत प्रतिशत बच्चों को भी उच्च प्राथमिक शिक्षा सुलभ करा दी जाएगी।
  10. उच्च शिक्षा का प्रसार एवं उन्नयन किया जाएगा। उच्च शिक्षा का स्तर बनाए रखने का उत्तरदायित्व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का होगा उच्च शिक्षा को सर्व सुलभ कराने के लिए खुले विश्वविद्यालयों (Open Universities) की स्थापना की जाएगी ।
  11. शिक्षकों के वेतनमान बढ़ाने और सेवा शर्तों को आकर्षक बनाने की बात की , सेवा पूर्व और सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण के लिए प्रत्येक जिले में जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान (DIET) की स्थापना की जाएगी।
  12. प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों के विस्तार की बात की
  13. प्रत्येक स्तर पर शिक्षा के लिए शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग करने की बात की।
  14. शिक्षा के प्रत्येक स्तर के लिए न्यूनतम अधिगम स्तर (Minimum level of Learning, MLL) निश्चित करने की बात कही गई ।
  15. शैक्षिक अवसरों की समानता पर जोर देते हुए शैक्षिक विषमताओं को दूर करने की बात की है। महिलाओं , अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों , पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों, विकलांगों और प्रौढ़ की शिक्षा के लिए विशेष प्रयत्न किए जाएंगे।
  16. Rashtriya Shiksha Niti 1986 मे विकलांग और मंदबुद्धि बच्चों की शिक्षा पर भी ध्यान दिया। मामूली विकलांग बच्चे सामान्य बच्चों के साथ पड़ेंगे , गूंगे, बहरे ,अंधे और मंदबुद्धि बालकों के लिए अलग-अलग स्कूल खोले जाएंगे।
  17. विकलांग बच्चों को कुटीर उद्योग धंधों की शिक्षा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की बात की।
  18. सभी प्राथमिक विद्यालयों में आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था करने के लिए ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड (Operation Black Board) योजना चलाई गई।
  19. Rashtriya Shiksha Niti 1986 ने स्त्री पुरुषों की शिक्षा में भेद न करने की बात की और महिलाओं को विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  20. मूल्यांकन को एक सतत प्रक्रिया बनाने, बाह्य मूल्यांकन को अधिक महत्व देने, परीक्षाओं को वैध और विश्वसनीय बनाने, श्रेणी के स्थान पर ग्रेड सिस्टम लागू करने की बात की।
  21. ग्रामीण भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित “ग्रामीण विश्वविद्यालय” मॉडल के निर्माण के लिये नीति का आह्वान किया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की सिफारिशें

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-

Rashtriya Shiksha Niti 1986 मे यह घोषणा की गई थी कि प्रत्येक 5 वर्ष के बाद इस नीति के क्रियान्वयन और उसके परिणामों की समीक्षा की जाएगी पर केंद्र सरकार ने 3 वर्ष बाद 1990 में ही इसकी समीक्षा हेतु ‘राम मूर्ति समीक्षा समिति, 1990’ का गठन कर दिया।

इस समिति ने अपनी फाइनल रिपोर्ट पर विचार भी शुरू नहीं किया था कि सरकार ने 1992 में इस नीति के क्रियान्वयन एवं परिणामों की समीक्षा हेतु ‘जनार्दन रेड्डी समिति 1992’ का गठन कर दिया।

इन दोनों समितियों की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने 1992 में ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में कुछ संशोधन कर दिए और इसे संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 (National Policy on Education 1986, with Modifications Undertaken in 1992) के नाम से प्रकाशित किया। कुछ लोग इसे ही भूल से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 कहने लगते हैं।

सरकार ने इसी वर्ष Rashtriya Shiksha Niti 1986 की कार्य योजना (Plan of Action) में भी कुछ परिवर्तन किये। इस परिवर्तित कार्य योजना को ही Plan of Action 1992 कहा जाता है।

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