नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 क्या है? (5+3+3+4 Education system)

नई शिक्षा नीति 2020 ने भारत में विद्यालय शिक्षा की संरचना को बदलते हुए नई विद्यालयी शिक्षा की संरचना 5+3+3+4 का सुझाव दिया है। 5+3+3+4 की स्कूली शिक्षा व्यवस्था ने वर्तमान में लागू 10+2 वाली स्कूली शिक्षा व्यवस्था को प्रतिस्थापित किया है। 10+2 बाली शिक्षा व्यवस्था में 3 से 6 वर्ष के बच्चे शामिल नहीं थे। नई व्यवस्था 5+3+3+4 ने 3 वर्ष के बच्चों को शामिल कर प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) की एक मजबूत बुनियाद को शामिल किया गया है।नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 क्या है

बच्चों के मस्तिष्क का 85 प्रतिशत विकास 6 वर्ष की अवस्था से पूर्व हो जाता है। यानी बच्चों के मस्तिष्क के उचित विकास और शारीरिक वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए आरंभिक 6 वर्ष सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए विद्यालय पूर्व शिक्षा (Pre education) को औपचारिक शिक्षा का अंग बनाना अति महत्वपूर्ण था। आइए अब हम नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 क्या है? इसको विस्तार से समझते हैं-

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नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 क्या है? (5+3+3+4 education system) 

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में एक नवीन शिक्षा शास्त्रीय एवं पाठ्यचर्यात्मक शैक्षणिक ढांचे को सुझाया गया है। जिसमें विद्यालय शिक्षा को चार स्तरों में बांटा गया है जो इस प्रकार है।

नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 क्या है
नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 शिक्षा प्रणाली
  1. बुनियादी स्तर (Foundational Stage) 
  2. तैयारी स्तर (Preparatory Stage) 
  3. मिडिल स्तर (Middle Stage) 
  4. माध्यमिक स्तर (Secondary Stage)

बुनियादी स्तर (Foundational Stage)

इस स्तर में 3-8 वर्ष की आयु के छात्र शामिल है। इस स्तर का कुल समय कल 5 वर्ष का है जो दो भागों में विभाजित है।

  • जिसमें से प्रारम्भ के तीन वर्ष पूर्व विद्यालय शिक्षा (Pre School Education) के हैं । 3 से 6 वर्ष की आयु विद्यालय शिक्षा मैं प्रवेश हेतु तैयारी के लिए है। 3 वर्ष तक यह बच्चे आंगनबाड़ी / पूर्व विद्यालय/ बाल वाटिका में शिक्षा ग्रहण करेंगे। 
  • बुनियादी स्तर के अंतिम 2 वर्ष विद्यालय शिक्षा के प्रारंभिक 02 वर्ष (कक्षा 1,2) होंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ऐसी पहली शिक्षा नीति है जिसने पूर्व विद्यालय शिक्षा को औपचारिक शिक्षा का अंग माना है। नई शिक्षा नीति ने 3 वर्ष के बच्चों को औपचारिक शिक्षा में शामिल कर प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा ECCE- (Early childhood care and education) की एक मजबूत बुनियाद को शामिल किया है।

  • फाऊंडेशनल स्टेज में 5 वर्षीय लचीली (Flexible), बहुआयामी (Multi dimensional), बहु स्तरीय (Multi level), खेल/ गतिविधि आधारित (Play / Activity based) पाठ्यक्रम और शिक्षा शास्त्र शामिल होगा।
  • इसमें अच्छे व्यवहार, शिष्टाचार ,नैतिकता ,व्यक्तिगत और सार्वजनिक साफ सफाई/ स्वच्छता, टीम वर्क और सहयोग इत्यादि पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

तैयारी स्तर (Preparatory Stage) 

प्रिपरेटरी स्तर में 8 से 11 वर्ष की आयु के बच्चे शामिल हैं। इस स्तर का कुल समय 3 वर्ष का है, जिसमें कक्षा 3 से कक्षा 5 तक की शिक्षा आती है।

फाऊंडेशनल स्टेज की खेल,खोज और गतिविधि आधारित शिक्षण शास्त्रीय शैली तो इस स्तर पर रहेगी ही साथ ही पाठ्य पुस्तक आधारित शिक्षण को भी शामिल किया जाएगा। यह स्तर फाऊंडेशनल स्तर की तुलना में अधिक औपचारिक होगा पर अंर्तक्रिया (Intraction) आधारित अध्ययन अध्यापन को यहां अपनाया जाएगा। जिसमें पढ़ने, लिखने ,बोलने ,शारीरिक शिक्षा ,कला ,भाषा, विज्ञान और गणित भी शामिल होंगे।

मिडिल स्तर (Middle Stage) 

मिडिल स्तर में 11 से 14 वर्ष की आयु के बच्चे शामिल है। इस स्तर का भी कुल समय 3 वर्ष का होगा जिसमें कक्षा 6 से लेकर कक्षा 8 तक की शिक्षा आती है।

मिडिल स्तर पर विषय विशेषज्ञ शिक्षकों के द्वारा विषय की अमूर्ति अवधारणाओं पर काम शुरू होगा। जो विज्ञान ,गणित, कला, खेल , सामाजिक विज्ञान , मानविकी और व्यावसायिक विषयों मे होंगा। सभी विषयों में अनुभव आधारित शिक्षण (Experimental learning) और विषयों के बीच परस्पर संबंधों को खोजा जाएगा।

माध्यमिक स्तर (Secondary Stage)

माध्यमिक स्तर में 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चे शामिल हैं। इस स्तर का कुल समय 4 वर्ष का होगा जिसमें कक्षा 9 से कक्षा 12 तक की शिक्षा आती है।

इस स्तर पर बहू विषयक अध्ययन (Multidisciplinary study) को शामिल किया जाएगा। विद्यार्थियों को विषयों के चुनाव को लेकर अधिक लचीलापन दिया जाएगा। इच्छा हो तो कक्षा 10 के बाद व्यवसायिक या किसी विशेषज्ञता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 11-12 में अन्य कोर्स के चुनाव के विकल्प लगातार विद्यार्थियों के लिए होंगे।

शारीरिक शिक्षा, कला और शिल्प ,व्यावसायिक विषय मूल पाठ्यक्रम का अंगों होंगे। पाठ्यक्रम (Curricular),सह- पाठयक्रम (Co-Curricular), अतिरिक्त पाठ्यक्रम (Extra curricular) जैसा कोई विभाजन नहीं होगा। कला, मानविकी और विज्ञान जैसी शाखाएं नहीं होगी। अकादमिक अथवा व्यवसायिक धारा जैसी कोई श्रेणियां नहीं होगी।

भारत में विद्यालय शिक्षा की संरचना मे समय-समय पर आये परिवर्तन-

भारत विश्व के सबसे बड़े शिक्षा तंत्र में से एक है। यदि हम विद्यालय शिक्षा की बात करें तो UDICE डाटा 2021 के अनुसार लगभग 15 लाख से अधिक विद्यालय भारत में है लगभग 97 लाख शिक्षक कार्यरत हैं। 26 करोड़ से अधिक विद्यार्थी है, जिसमें 25 करोड़ से अधिक विद्यार्थी औपचारिक विद्यालय शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। जिसमें बालक तथा बालिकाओं की संख्या लगभग समान है। 13.01 करोड़ बालक और 12.5 करोड़ बालिकाएं विद्यालय शिक्षा प्राप्त कर रही है। हम यह कह सकते हैं कि हम देश के लगभग प्रत्येक बच्चे तक विद्यालय शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित कर पाए लेकिन यह ऐसे ही नहीं हुआ देश ने स्वतंत्रता के बाद एक लंबी यात्रा तय की है।

भारत में विद्यालय शिक्षा का स्तर क्या होना चाहिए इसका स्वरूप क्या होना चाहिए इस पर समय-समय पर चिंतन और इसमें परिवर्तन होते रहे हैं। आइए अब हम स्वतंत्रता के बाद देश की विद्यालय शिक्षा की संरचना के स्वरूप में आए परिवर्तनों को देखते हैं।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948-49)

जब देश स्वतंत्र हुआ तो हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजी शासन के अधीन जो शिक्षा व्यवस्था थी उसके आधार पर चल रही थी। स्वतंत्र होते ही देश में सबसे पहले डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग बना जिसने 1949 में अपनी रिपोर्ट दी।

यद्यपि वह आयोग विश्वविद्यालय शिक्षा से जुड़ा था फिर भी आयोग का मानना था कि विश्वविद्यालय शिक्षा का आधार तो विद्यालय शिक्षा तैयार करती है इसलिए उन्होंने विद्यालय शिक्षा की एक संरचना की बात की और कहा 10+02+03 की व्यवस्था इस देश में होनी चाहिए। जिसमें 10 वर्ष की माध्यमिक शिक्षा दो वर्ष की उच्च माध्यमिक शिक्षा और 3 वर्ष की विश्वविद्यालय शिक्षा होनी चाहिए। शिक्षा की संरचना में जो प्रारंभ के 12 वर्ष थे उसको लेकर कई तरीके के प्रयोग होते रहे। 

आचार्य नरेंद्र देव समिति

1952-53 में जब आचार्य नरेंद्र देव समिति आई उसने एक सुझाव यह दिया की जो 12 वर्ष की विद्यालय शिक्षा है उनमें से 11 वर्ष (08+03) को विद्यालय शिक्षा का भाग रखा जाए और कक्षा 12 को विश्वविद्यालय शिक्षा का अंग बना दिया जाए। अर्थात कक्षा 11 विद्यालय शिक्षा का अंग रहे और कक्षा 12 विश्वविद्यालय शिक्षा का अंग हो जाए। दुनिया के कुछ देशों में आज भी यह शिक्षा व्यवस्था चलती है।

माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53) / मुदालियर आयोग

सन् 1952-53 में माध्यमिक शिक्षा आयोग बना। डॉ लक्ष्मण स्वामी मुदालियर के अध्यक्षता में यह आयोग बना जिसने 1953 में अपनी रिपोर्ट पेश की। इस आयोग ने कहा कि 04 से 05 वर्ष की प्रारंभिक शिक्षा इस देश में चल रही है। क्योंकि माध्यमिक शिक्षा पर इस आयोग को अनुशंसा देनी थी इसलिए प्राथमिक शिक्षा पर इस आयोग ने बहुत बात नहीं की।

कई राज्यों में 4 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा थी और कई राज्य में 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा चल रही थी। इन्होंने कहा कि उसके बाद की जो शिक्षा है उसमें 7 वर्ष की माध्यमिक शिक्षा होनी चाहिए। जिसमें से 3 वर्ष की पूर्व माध्यमिक शिक्षा या मिडिल ( कक्षा 6,7,8) होनी चाहिए और 4 वर्ष की माध्यमिक शिक्षा होनी चाहिए। इस आयोग ने भी कक्षा 12 को विश्वविद्यालय व्यवस्था का अंग बनाए रखने की बात कही क्योंकि उन्होंने 4 वर्ष की प्रारंभिक शिक्षा को आधार माना था। तो उनकी अनुशंसाएं भी आचार्य नरेंद्र देव समिति की अनुशंसाओं के अनुरूप ही रही।

शिक्षा आयोग (1964-66) / कोठारी आयोग

सन् 1964-66 में शिक्षा आयोग आया डाॅ दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में, 1966 में इसकी रिपोर्ट आई। इन्होंने देखा कि देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग प्रकार की शिक्षा व्यवस्थाएं प्रचलित हैं। यानी देश में शिक्षा व्यवस्था को लेकर एकरूपता नहीं है और देश की शिक्षा व्यवस्था में एकरूपता लाने की आवश्यकता है।

इसलिए यह वापस विद्यालय शिक्षा आयोग की सिफारिश पर गए और कहां देश भर में एक समान 10+02+03 की शिक्षा व्यवस्था लागू होनी चाहिए। जिसमें 7 से 8 वर्ष की अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षाहो और कक्षा 12 को विद्यालय व्यवस्था का अंग बनाया जाये। कक्षा 12 तक जो बच्चा पड़े तो उसमें कम से कम 3 वर्ष की व्यावसायिक शिक्षा हो। इसके बाद देश में नीतियां आना शुरू हुई।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968

सन् 1968 में देश की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई। ठीक इससे पहले कोठारी आयोग की रिपोर्ट आ चुकी थी तो उसे रिपोर्ट को आधारभूत मानते हुए इन्होंने भी कहा कि पूरे देश में समान शिक्षा संरचना 10+02+03 लागू होनी चाहिए। साथ ही इस नीति ने कहा कि कम से कम 50% छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया जाए। आज शिक्षा नीति 2020 में हम फिर 50% छात्रों का नामांकन व्यावसायिक शिक्षा में करने का लक्ष्य निर्धारित करके आगे बढ़ रहे हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्ररूपी दस्तावेज 1979-

राजनीतिक कारणों से सन् 1989 में सत्ता परिवर्तन हुआ। तब फिर से एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्ररूपी दस्तावेज आया। इसे प्ररूपी दस्तावेज इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह नीति का रूप नहीं ले सका था तब तक मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई थी और वापस कांग्रेस की सरकार आ गई।

इन्होंने फिर से 8+4+3 की संरचना की बात की। इन्होंने 10 + 2 को 8 + 4 में बांट दिया और कहा कि 8 वर्ष की प्रारंभिक शिक्षा होगी और और 4 वर्ष की जो माध्यमिक शिक्षा होगी उसमें सामान्य और व्यावसायिक शिक्षा दोनों आयाम जोड़ जाएंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986

सन 1986 में दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई। जिसने चार स्तरों पर 12 वर्ष की विद्यालय शिक्षा की बात की और 3 वर्ष की विश्वविद्यालयी शिक्षा की बात की। (10+02+03)

  • 05 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा
  • 03 वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा
  • 02 वर्ष की माध्यमिक शिक्षा
  • 02 वर्ष की उच्च माध्यमिक (इंटरमीडिएट) शिक्षा

संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 और उसकी कार्य योजना 1992 (Program of Action) ने भी इसी शिक्षा संरचना को आगे बढ़ाया।

वर्तमान में विद्यालय शिक्षा की संरचना

वर्तमान की विद्यालय शिक्षा में पूर्व प्राथमिक शिक्षा अभी भी औपचारिक शिक्षा का अंग नहीं है परंतु कई स्थानों पर 5 से 6 वर्ष के बच्चे पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विद्यालयों, आंगनबाड़ियों, बाल वाटिकाओं में जाते हैं। परंतु यह सार्वजनिक तौर पर सार्वभौमिक नहीं है। वर्तमान में हमारे देश में 10 + 2 संरचना की विद्यालय शिक्षा व्यवस्था लागू है। जो निम्न प्रकार है-10+2 शिक्षा प्रणाली

  • 05 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा (6-11 वर्ष / कक्षा 1-8)
  • 03 वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा (11-14 वर्ष / कक्षा 6-8)
  • 02 वर्ष की माध्यमिक शिक्षा (14-16 वर्ष / कक्षा 9-10)
  • 02 वर्ष की उच्च माध्यमिक शिक्षा (16-18 वर्ष / कक्षा 11-12)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विद्यालय शिक्षा की संरचना में पुनः आमूल चूल परिवर्तन सुझाए गए हैं जिन्हें हम ऊपर देख चुके हैं।

सारांश– इस पोस्ट के माध्यम से आज हमने नई शिक्षा नीति में 5+3+3+4 क्या है?, विद्यालय शिक्षा की नई संरचना, बुनियादी स्तर (Foundational Stage), तैयारी स्तर (Preparatory Stage), मिडिल स्तर (Middle Stage) माध्यमिक स्तर (Secondary Stage) को विस्तार से समझा । हमने विद्यालय शिक्षा की संरचना में समय-समय पर हुए परिवर्तनों को भी देखा। 

 

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