Inclusive Education in Hindi समावेशी शिक्षा क्या है? (P-1)

सभी पाठकों को मेरा नमस्कार! , आज हम इस पोस्ट Inclusive education in hindi के माध्यम से समावेशी शिक्षा ( Inclusive education) की अवधारणा (concept) को विस्तार से समझेंगे। इस पोस्ट में हम समावेशन का अर्थ, समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा, समावेशी शिक्षा का विकासक्रम , दिव्यंगता का सामाजिक एवं चिकित्सीय मॉडल (Social and Medical model of Disability) , विशिष्ट शिक्षा, एकीकृत शिक्षा, समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों?, कक्षा कक्ष में समावेशी शिक्षा का क्रियान्वयन कैसे करें? , समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका आदि Topics को विस्तार से समझेंगे। Inclusive education in hindi

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समावेशी शिक्षा को समझने से पहले हमें समावेशन का अर्थ समझना होगा

समावेशन का अर्थ ( Meaning of inclusiveness) 

सामाजिक सदस्यों को समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित करना समावेशन कहलाता है। (Including social members in the mainstream of society is called inclusiveness)

सभी प्रकार के छात्रों को शिक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित करना शैक्षिक समावेशन कहलाता है और शैक्षिक समावेशन को प्राप्त करने की प्रक्रिया समावेशी शिक्षा कहलाती है।

सभी प्रकार के छात्रों में सामिल है – अलग-अलग लिंग (gender) , संस्कृति (culture) , भाषा , जाति / धर्म/प्रजाति (Race) के छात्र , प्रतिभाशाली बालक, दिव्यांग बालक, अलग-अलग अधिगम स्तर वाले छात्र, अमीर /गरीब छात्र, अनाथ बच्चे, अलग-अलग तरीकों से सीखने वाले छात्र , First generation Lerners ( जिनके मां-बाप पढ़े-लिखे नहीं है और वह अपने परिवार में पहले हैं जो पढ़ रहे हैं)

समावेशी शिक्षा क्या है? (samaveshi shiksha kya hai) 

एक ऐसी शिक्षा प्रणाली जिसमें विकलांग और बिना विकलांग छात्र ( student with and without disability) एक साथ सीखते हैं और शिक्षण और अधिगम की प्रणाली को विभिन्न प्रकार की विकलांगता वाले छात्रों की सीखने की जरूरतों के अनुसार उपयुक्त रूप से अनुकूलित किया जाता है।

  • एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि समावेशी शिक्षा से तात्पर्य केवल विकलांग बच्चों को ही कक्षा में सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा देना नहीं है बल्कि सभी बच्चे जो विभिन्न वर्ग एवं योग्यता के हैं को एक साथ एक ही कक्षा में शिक्षा देना समावेशी शिक्षा कहलाता है।
  • समावेशिता तब है जब किसी समूह के सब सदस्य उस समूह की गतिविधियों में भाग लेते हैं इसका अर्थ यह है कि इन गतिविधियों के लिए जो प्रावधान किए जाते हैं वे समस्त समूह की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किए जाएं ना की विशेष योग्यता क्षमताओं अथवा किसी अन्य तरह की जरूरत वाले लोगों को ध्यान में रखकर।
  • समावेशी शिक्षा में केवल पढ़ाई में ही नहीं बल्कि खेल , मनोरंजन , सांस्कृतिक गतिविधियों में भी दिव्यांग बच्चों को उतने  ही अवसर (opportunity) मिलते है जितने एक समान्य बच्चे को मिलते है।
  • समावेशन (Inclusion) एक गत्यात्मक प्रक्रिया है ऐसा नहीं होगा कि हम कहें कि आज हमने Inclusion प्राप्त कर लिया। Inclusion हमें daily perform करना है कक्षा में। यानी Inclusion एक Destination नहीं है यह एक लगातार चलते रहने वाला रास्ता है।

समावेशी शिक्षा का विकास क्रम (Evolution of Inclusive Education in hindi) –Evolution of Inclusive Education ( समावेशी शिक्षा का विकास क्रम)

  • शुरुआत में दिव्यांग बच्चों को शिक्षा नहीं दी जाती थी उन्हें सामान्य बच्चों से अलग समझ जाता था और इस दृष्टि से देखा जाता था कि वह कुछ कर नहीं सकते हैं वह पढ़ लिख नहीं सकते हैं। धीरे-धीरे समाज का दृष्टिकोण बदला और दिव्यांग बच्चों की शिक्षा की भी बात की जाने लगी इन बच्चों की शिक्षा के लिए अलग स्कूल बनाए गए और इन स्कूलों में ही इन बच्चों को शिक्षा दी जाने लगी।
  • इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था में समस्या यह थी कि विषेश विद्यालय (Special School) की संख्या बहुत कम थी, विशेष विद्यालय विकलांग बच्चों के घर से दूर होते थे जहाँ ये बच्चे रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। समय के साथ-साथ इस बात की चर्चा होने लगी कि विकलांग बच्चे सर्वप्रथम बच्चे हैं, उसके बाद उनकी विकलांगता आती है।अतः उनको भी दूसरे सामान्य बच्चों जैसा घर के पास सामान्य विद्यालय में पढ़ने का अधिकार है।
  • साथ ही विशेष विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षा के बाद समाज में समायोजित (Adjust) होने में समस्याएं आ रही थी ।
  • विशेष शिक्षा की इन समस्याओं की वजह से एकीकृत शिक्षा का दृष्टिकोण आया अलग किए गए छात्रों को मुख्य धारा में (सामान्य कक्षाओं में) लाने का प्रयास किया जाने लगा। लेकिन अभी तक हम दिव्यांगता (Disability) को  मेडिकल माॅडल (Medical Model) से ही देख रहे थे । फिर धीरे-धीरे हमारी सोच चेंज हुई और दिव्यांगता (Disability) को देखने का नया दृष्टिकोण (Social model of Disability) सामने आया ।  सामाजिक प्रतिमान (social model) ने ही सामाजिक शिक्षा (inclusive education) की अवधारणा (concept) को आगे बढ़ाया।

दिव्यांगता का चिकित्सीय मॉडल (Medical Model of Disability) –Medical model of disability

  • Disability के इस दृष्टिकोण में Individual ( उस व्यक्ति) को ही प्रॉब्लम समझा जाता है।
  • Disability / Impaironment केवल उस (Individual) व्यक्ति में ही हैं और हमें उस (Individual) व्यक्ति को ही सही करना है।
  •  Disability का कारण Physical / Mental / Sensory Impairment है। इस Impairment का इलाज करके या इसके प्रभाव को कम करके इस Disability को दूर (या कम) किया जा सकता है।
  • यह दृष्टिकोण सिर्फ उस Individual (व्यक्ति) को चेंज करने की बात करता है।

दिव्यांगता का सामाजिक प्रतिमान (Social Model of Disability)-Social model of disability

  • इस दृष्टिकोण के अनुसार main problem वह व्यक्ति या उसके Impairments नहीं है बल्कि ‘social barriers’ हैं।
  • दिव्यांगता (Disability) एक इंसान में नहीं होती बल्कि हमारे Environment / हमारे Attitude में होती है । Disability को दूर करने के लिए सिर्फ उस व्यक्ति को सही/ चेंज करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हमारे Environment और हमारे Attitude को भी चेंज करने की आवश्यकता है।
  • Disability socially constructed होती है यानी समाज decide करता है की ये Disable है और ये नहीं। उदाहरण के लिए हम लोग देख पाते हैं क्योंकि प्रकाश होता है यदि अंधेरा कर दिया जाए तो हम लोग भी नहीं देख पायेंगे जबकि कुछ जीव ऐसे हैं जो अंधेरे में भी देख सकते इस हिसाब से हम लोग भी Disabled हुए ।

Example– मान लीजिए मेरा एक पैर नहीं है और मुझे सीडीओ से चढ़कर ऊपर जाना है। मेरे दो पैर होते तो मैं Disabled नहीं होता और मैं सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जा पाता।

यदि हम इसे दूसरी तरह से देखें- यदि मेरा एक पैर नहीं है तो क्या हुआ यदि यहां रैंप या लिफ्ट है जिससे मेरी व्हीलचेयर ऊपर तक पहुंच सकती है तो मेरी Disability का तो कोई Issue ही नहीं होगा मैं तो ऊपर पहुंच ही जाऊंगा। मेरी Disability सिर्फ इसलिए है क्योंकि मेरा Interaction जब Environment से होता है तो मैं उतना अच्छा काम नहीं कर पाता जितना कोई सामान्य व्यक्ति कर सकता है । यदि उस Environment में, लोगों की सोच में , मेरे Attitude में परिवर्तन हो जाए और मुझे सहायक Instrument दे दिया जाए तो मैं भी उस काम को कर पाऊंगा।

विशिष्ट शिक्षा (Special Education)-

विशिष्ट शिक्षा (Special Education) शिक्षाशास्त्र की एक ऐसी शाखा है जिसके अन्तर्गत उन बच्चों को शिक्षा दी जाती है जो सामान्य बच्चों से शारीरिक मानसिक और समाजिक क्षेत्रों में कुछ अलग होते हैं। इन बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताएँ भी सामान्य बच्चों से कुछ विशिष्ट होती है यही कारण है कि इनको विशिष्ट आवश्यकता वाले बालक (Children with special needs) भी कहा जाता है।

ये बच्चे अपनी सहायता स्वयं नहीं कर पाते। अतः इनकी सहायता के लिए तथा इनको सक्षम बनाने के लिए, विद्यालय, परिवार, समाज और परिवार में समायोजन के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा दी जाती है, जिससे वे अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूर्ति करने में स्वयं समर्थ हो सकें।

अत: कहा जा सकता है कि “विशिष्ट शिक्षा विशिष्ट रूप से तैयार किया गया एक शैक्षिक अनुदेशन है जिससे शैक्षणिक गतिविधियों, विशेष पाठ्यक्रम और विशेष शिक्षक के द्वारा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षण अधिगम सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।”

अतः विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को अलग विद्यालयों में विशेष ढंग से दी जाने वाली शिक्षा की विशिष्ट शिक्षा कहते हैं।

एकीकृत शिक्षा (Integrated Education)-

एकीकृत अथवा ‘ Integrated’ का अर्थ होता है पृथक किए हुए लोगों को पुनः मिश्रित करना अथवा जोड़ना। अर्थात विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों या विकलांग विद्यार्थियों को सामान्य विद्यालय में शैक्षिक सुविधाएं व शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराना ही ‘एकीकृत शिक्षा’ कहलाता है।

एकीकृत शिक्षा में इन बच्चों को सामान्य कक्षा के अनुकूल होना पड़ता। कई स्थिति में इन्हें असफलता का सामना करना पड़ता है जिसके कारण कुछ बच्चों को अलग कक्ष में भी पढ़ाया जाता है।

एकीकृत शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है विकलांग बच्चों को विशेष शिक्षा (Special Education) से हटाकर उनको सामान्य विद्यालय में सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा देना है। वर्तमान समय में एकीकृत शिक्षा पुरानी बात हो गयी है तथा अब समावेशित शिक्षा की शुरुआत हो चुकी है।

एकीकृत शिक्षा का प्रारम्भ-

जैसा कि आप जानते होंगे कि विकलांग बच्चों की शिक्षा की शुरुआत विशेष विद्यालय (special schools) से हुई। विशेष विद्यालय विकलांग बच्चों के घर से दूर होते थे जहाँ ये बच्चे रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। समय के साथ-साथ इस बात की चर्चा होने लगी कि विकलांग बच्चे सर्वप्रथम बच्चे हैं, उसके बाद उनकी विकलांगता आती है। अतः उनको भी दूसरे सामान्य बच्चों जैसा घर के पास सामान्य विद्यालय में पढ़ने का अधिकार है। इसी सोच ने एकीकृत शिक्षा को जन्म दिया।

भारत में एकीकृत शिक्षा का प्रारम्भ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सन् 1974 में Ministry of Social Justice and Empowerment द्वारा चलाई गयी “विकलांग बच्चों के लिए एकीकृत शिक्षा” (Integrated Education for Disabled Children) जिसको संक्षेप में IEDC योजना भी कहते हैं, से हुई। 

IEDC योजना Ministry of Social Justice and Empowerment द्वारा लागू की गयी थी जबकि सामान्य विद्यालय शिक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत होते हैं अतः इस योजना को सही ढंग से लागू करने में परेशानी होती थी। जब 1981 में इस योजना का मूल्यांकन किया गया तो कुछ कमियों को देखते हुए इसे 1982-83 में शिक्षा मंत्रालय के अधीन कर दिया गया। वर्ष 1981 को संयुकत राष्ट्र संघ ने विकलांग व्यक्तियों के लिए अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया था। 

समावेशी शिक्षा का प्रारम्भ-

समावेशी शब्द का प्रचलन 1990 के दशक के मध्य से बढ़ा, जब जून, 1994 में सलमानका (स्पेन) में यूनेस्को द्वारा “विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं पर विश्व सम्मेलनः सुलभता और गुणवत्ता” (World Conference on Special Needs Education: Access and Quality) का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन में 92 देशों और 25 अंतराष्ट्रीय संगठनों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन का समापन इस उद्घोषणा के साथ हुआ कि “प्रत्येक बच्चे की चरित्रगत विशिष्टताएँ, रूचियाँ, योग्यताएँ एवं सीखने की आवश्यकताएँ अनोखी होती हैं, अतः शिक्षा प्रणाली में इन विशिष्टताओं और आवश्यकताओं की व्यापक विविधता का ध्यान रखना चाहिए”।

इस सम्मेलन के बाद ही विभिन्न देशों ने बच्चों की आवश्यकताओं, रूचियों एवं योग्यताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाया, शिक्षा मे यही परिवर्तन समावेशित शिक्षा के रूप में प्रचलित हुआ।

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों? 

  • क्योंकि विशेष विद्यालयों (Special school) में पढ़ने वाले बच्चे उसी वातावरण में ढल जाते हैं बाद में जब यह बच्चे समाज में आते हैं तो इन्हें society में adjust होने में समस्याएं आती हैं। सामान्य बच्चे भी विशेष आवश्यकता वाले बच्चों से दूर रहते हैं जिससे वह नहीं सीख पाते कि दिव्यांग बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करना है उनके साथ कैसे मिलजुल कर रहना है।
  • क्योंकि सामान्य विद्यालय सभी जगह हैं जबकि विशेष विद्यालय दूर शहरों में होते हैं अतः एक विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को विद्यालय जाने के लिए दूर तक का सफर करना पड़ता है और अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है जो कि उसे बच्चों के मूल अधिकारों का हनन है।
  • सभी प्रकार के बच्चों को एक साथ एक ही क्लास में पढ़ाने से क्लास की diversity विविधता बढ़ जाती है जिससे सभी छात्रों को एक दूसरे से सीखने के अधिक अवसर मिलते हैं।
  •   दिव्यांग बच्चे भी बहुत अच्छे learner, participant, peer होते हैं ऐसा नहीं है कि दिव्यांग बच्चे ही दूसरों से सीखते हैं बल्कि सामान्य बच्चे भी दिव्यांग बच्चों से सीखते हैं क्योंकि हर बच्चे में एक विशेष गुण होता है।

कक्षा-कक्ष में समावेशी शिक्षा कैसे लागू करें? (How to implement inclusive education in a classroom?) 

अधिगमकर्ता का समावेशन (Inclusiveness of learner) –

  1. RTE Act-2009 Article 3&4 में अनुशंसा की गई है। सभी प्रकार के बालक एक साथ एक ही कक्षा में साथ-साथ अधिगम करेंगे सभी बालक एक ही कक्षा में एक सामान्य विद्यालय में दाखिला प्राप्त करेंगे और एक साथ शिक्षा या अधिगम प्राप्त करेंगे। NEP 2020 राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसके लिए 2025 तक लक्ष्य तय करती है।
  2. विद्यालय दाखिले (Admission) में तथा विभिन्न विद्यालयों में लिंग (gender), जाति , नृजातीयता (Race), क्षेत्र, धर्म भाषा, बुद्धि लब्धि, दिव्यांगता, शैक्षिक स्तर आदि के आधार पर अंतर नहीं किया जाएग।
  3. आयु आधारित दाखिला Age based admission- उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुशंसित नीति ‘ वर्ष की 31 मार्च को जिसके 5 वर्ष पूर्ण होंगे उस बालक को 6 वर्ष में पहली कक्षा में दाखिला दिया जाएगा अन्य कक्षाओं के दाखिलों की आयु इसी क्रम में 31 मार्च के अनुसार निर्धारित होगी’
  4. आयु समरूप कक्षा age homogenous class- एक कक्षा में सभी विद्यार्थी सामान आयु के होते हैं जो 1 अप्रैल से अगले वर्ष की 31 मार्च के मध्य जन्मे होते हैं।
  5. Bridge course – वह बालक जो सीधा बड़ी कक्षाओं में दाखिला लेगा उसके लिए एक शुरुआती ब्रिज कोर्स रखा जाएगा जो उसे विद्यालय में बाकी अधिगम के लिए तैयार करें।
  6. NEP 2020 ने ऐसे छात्र जिन्हें Pre school education नहीं मिली है जो first generation learner है जिन्होंने सीधे कक्षा-1 में एडमिशन ले लिया है उनके लिए ऐसे ही एक ब्रिज कोर्स (विद्या प्रवेश) की बात की है।

अधिगम प्रक्रिया में समावेशन (Inclusiveness in learning process) –

वैयक्तिक विभिन्नताएं (Individual differences)-

विविधता (Diversity) समावेशी कक्षा की महत्वपूर्ण विशेषता है यदि विविधता को इथोचित सम्मान देते हुए अधिगमकर्ता केंद्रित शिक्षण अधिगम प्रक्रिया संपादित नहीं की जाती है तो शैक्षिक समावेशन का कोई अर्थ नहीं है। अतः प्रत्येक बालक की व्यक्तिक भिन्नताओं (Individual Differences) के अनुसार अधिगम प्रक्रिया उपलब्ध हो जिससे प्रत्येक बालक अधिगम प्रक्रिया में सम्मिलित हो सके । सभी बालकों के अनुसार अधिगम प्रक्रिया उपलब्ध कराने के लिए संसाधनों से भी अधिक आवश्यकता इस बात की होती है की शिक्षक कितना नवोन्मेषी (Innovative) और सृजनात्मक सोच (creative thinking) वाला है।

कक्षा कक्ष का वातावरण (Classroom Environment)

बाल केंद्रित ,मैत्रीपूर्ण शैक्षिक वातावरण समावेशी कक्षा कक्ष की आधारभूत पहचान है। इसमें शिक्षक की भूमिका एक सुगमकर्ता की है जिसके मार्गदर्शन में कक्षा कक्षा के समस्त बच्चे ज्ञान सृजन (Knowledge construction) की प्रक्रिया में भाग लेते हैं इसके लिए आवश्यक है कि कक्षा कक्षा का वातावरण पूर्णता भय मुक्त हो, लोकतांत्रिक हो, एवं सौहार्दपूर्ण (मैत्रीपूर्ण) हो अर्थात बिना किसी भय तथा झिझक के एक दूसरे के विचारों का सम्मान करते हुए मित्रवत वातावरण में बच्चे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में भाग ले ।

कक्षा चित्रों और शिक्षण अधिगम सामग्री से भरी हो और कक्षा में शिक्षण अधिगम सामग्री ऐसे स्थान पर रखी हो जिससे सभी प्रकार के छात्र उसे आसानी से प्राप्त कर पाएं और उनका प्रयोग कर पाए।

सहकारी शिक्षण (Cooperative /Collaborative teaching)-

छात्र मात्र शिक्षक से या विद्यालय में ही नहीं सीखते छात्र अपने सहपाठियों से/ साथी समूह से भी सिखाते हैं। अतः शिक्षक को सामूहिक अधिगम प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहिए। सभी कार्यों और गतिविधियों को समूह गतिविधियों (group activities) के माध्यम से कराने का प्रयास करना चाहिए जिससे बच्चे एक दूसरे के अनुभवों का लाभ उठाते हुए , एक दूसरे का आकलन करते हुए ,एक दूसरे की सहायता करते हुए अपने ज्ञान का सृजन कर सकें। समूह अधिगम से सिर्फ दिव्यांग छात्रों को ही लाभ नहीं होता बल्कि यह सभी छात्रों को विभिन्न लोगों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है और भविष्य में भी समावेशन को प्रोत्साहित करता है । 

 समावेशी पाठ्यक्रम (Inclusive Curriculum)-

ऐसा पाठ्यक्रम जिसमें ऐसे क्रियाकलाप या विषय वस्तु शामिल हो जो सामान्य एवं दिव्यांग बालकों को एक साथ सम्मिलित कर पाए। इस प्रकार के पाठ्यक्रम को सामान्य एवं अधिगम बाधित (Learning impaired) बालक दोनों के शारीरिक एवं मानसिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। पाठ्यक्रम का प्रारूप ऐसा हो जिससे सामान्य एवं विकलांग दोनों प्रकार के बालक क्रियाकलापों में एक दूसरे को कुछ ना कुछ सहयोग कर सकें।

कुछ विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को सामान्य पाठ्यक्रम में परिवर्तन की जरूरत नहीं पड़ती है यह बच्चे सामान्य बच्चों की तरह पाठ्यक्रम को समझ सकते हैं बस प्रस्तुत करने के तरीके में परिवर्तन करना होता है जैसे दृष्ट बाधित बच्चों के लिए ब्रेल में लिखे हुए विषय वस्तु , जो श्याम पट पर लिखे उसको बोले भी।

परंतु कुछ विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के (जैसे-मानसिक मंद) लिए पाठ्यक्रम अनुकूलन करना पड़ता है क्योंकि इसके बिना ऐसे बच्चों का समावेशन मुश्किल कार्य है। इसलिए पाठ्यक्रम में विविधता तथा पर्याप्त लचीलापन होना चाहिए ताकि उसे प्रत्येक बालक की क्षमताओं आवश्यकताओं तथा रुचि के अनुसार अनुकूल बनाया जा सके बालकों में विभिन्न योग्यताओं व क्षमताओं का विकास हो सके उसे विद्यालय से बाहर , बालक के सामाजिक जीवन से जोड़ा जा सके।

आकलन (Assessment)- 

विभिन्न प्रकार के बच्चे एक बार में एक कक्षा में आते हैं अलग-अलग जरूरतो और स्तरों के बच्चों से यह अपेक्षा करना कि वह एक ही स्पीड से एक ही तरह से सारे कोर्स को समझें यह गलत होगा यहां तक कि हम बच्चों का आकलन भी एक ही तरह से कर रहे होते हैं जो लगभग इस तरह का हो जाता-Traditional Assessment

अतः हमें प्रत्येक छात्र की व्यक्तिक भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए आकलन के विविध तरीकों का प्रयोग करना चाहिए।

अक्षमताओं के बजाय क्षमताओं पर ध्यान (Focus on abilities rather disabilities)-

अक्सर हम बच्चों की दिव्यांगता (Disability) पर फोकस कर रहे होते हैं। कि इस बच्चे में यह कमी है तो वह यह नहीं कर पाएगा। इससे हमारा दृष्टिकोण सीमित हो जाता है और हम बच्चे की जो क्षमताएं (Abilities) हैं उनको नहीं देख पाते हैं । हमें बच्चों की क्षमताएं देखनी चाहिए और उन क्षमताओं के आधार पर ही शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का नियोजन करना चाहिए। 

 समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका (Role of teacher in inclusive education) –

(1) सभी दिव्यांग बच्चे जो उसके क्षेत्र में है उन्हें कक्षा में इनरोल करना साथ ही उनके विद्यालय तक पहुंचाने की व्यवस्था करना।

(2) अपने सभी छात्रों की सामाजिक (Social), भावनात्मक (Emotional), व्यावहारिक (Behavioral) और शैक्षणिक (Academic) शक्तियों (Strengths) की पहचान करना।

(3) छात्रों की आवश्यकताओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए माता-पिता या अभिभावकों से परामर्श करना तथा इस जानकारी के आधार पर व्यक्तिगत शिक्षा योजनाएं (Individualized Education plans) और उचित सुविधाएं (Reasonable Accommodations) प्रदान करना ।

उचित सुविधाएं (Reasonable Accommodations)- 

  • जो लिख नहीं सकता है उसे परीक्षा में एक लेखक (Writer) दे दिया।
  • सभी छात्र सामान खेल खेलेंगे पर दिव्यांग बच्चों के लिए खेल के मैदान में खेल में, प्रयोग होने वाले उपकरणों में और नियमों में कुछ बदलाव कर दिए जाएंगे ।
  • कोई बच्चा बहुत ज्यादा दिव्यांग (Disabled) है स्कूल नहीं आ सकता तो  गृह शिक्षा (home education) की व्यवस्था करना।
  • ब्लैक बोर्ड में जो लिखा है उसे उतार नहीं पता है तो उसे फोटोग्राफ लेने की या audio record करने की परमिशन देना ।

Note– Reasonable Accommodations देना compulsory है यदि जरूरी होने पर भी टीचर नहीं दे रहा है तो उस पर फाइन भी लग सकता है। (RPWD act 2016)

( 4) बच्चों के बारे में जुटाई गई जानकारी के आधार पर बच्चों की आवश्यकताओं के अनुसार विद्यालयी पाठ्यचर्या, कक्षा के वातावरण , अपनी शिक्षण विधियों, मूल्यांकन के तरीकों को अनुकूलित करना।

(5) दिव्यांग बच्चों को  सहायक उपकरण (Assistive Devices) उपलब्ध कराना साथ ही उन्हें मॉनिटर करना कि बच्चे सही से सीख पा रहे हैं उनका विकास सही से हो रहा है या नहीं।

(6) Practice equity- हमें समावेशन के लिए equity के principle का प्रयोग करना चाहिए। हर बच्चे को उसकी जरूरत के हिसाब से उसे जो task करना है उसके लिए facility देते हैं । समावेशन के लिए अध्यापकों को partiality के concept से अलग घटना होगा। Equality vs Equity

(7) समावेशी कक्षा को सुचारू रूप से handle करने के लिए शिक्षको को लगातार अपने ज्ञान (Knowledge), कौशल (Skills) और अभिवृत्ति (Attitude) को train (प्रशिक्षित) करना होगा।

सारांश- इस पोस्ट (Inclusive Education in hindi) में हमने समावेशन का अर्थ, समावेशी शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा, समावेशी शिक्षा का विकासक्रम , दिव्यंगता का सामाजिक एवं चिकित्सा मॉडल (Social and Medical model of Disability), विशिष्ट शिक्षा, एकीकृत शिक्षा, समावेशी शिक्षा की आवश्यकता क्यों?, कक्षा कक्ष में समावेशी शिक्षा का क्रियान्वयन कैसे करें? , समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका आदि Topics को विस्तार से समझा। अगली पोस्ट में हम समावेशी शिक्षा से संबंधित छूटे हुए अन्य  Topics  पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

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