कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत Kohlberg theory in hindi

सभी पाठकों को मेरा नमस्कार! आज हम इस पोस्ट कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत के माध्यम से कोहलबर्ग का सामान्य परिचय , कोहलबर्ग के सिद्धांत से संबंधित महत्वपूर्ण शब्दावलियों (जैसे- नैतिकता, नैतिक विकास , नैतिक द्वंद , नैतिक तर्कणा) , हिंज की दुविधा (Heinz’s Dilemma), नैतिक विकास के स्तर और अवस्थाओं, कोहलबर्ग के सिद्धांत की आलोचनाओं आदि को विस्तार से समझेंगे। इन सभी बिंदुओं को अच्छी तरह समझने के बाद हम इस सिद्धांत से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों को भी देखेंगे ।कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत

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सामान्य परिचय-

लॉरेंस कोहलबर्ग अमेरिका के मनोवैज्ञानिक और शिक्षक थे जिन्होंने नैतिकता का सिद्धांत या नैतिक विकास का सिद्धांत दिया। कोहलबर्ग के नैतिक विकास के सिद्धांत में 3 स्तर और 6 अवस्थाएं हैं। कोलबर्ग ने भी पाया कि नैतिक विकास कुछ अवस्थाओं में होता है और यह अवस्थाएं सार्वभौमिक हैं यानी प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक बालक में पायी जाएंगी। 

नैतिक विकास पर रिसर्च करना जीन पियाजे ने शुरू किया था पियाजे ने देखा उम्र के साथ-साथ बच्चों में सही और गलत के प्रति जो चिंतन (Thinking) है वह चेंज हो रहा है, फिर पियाजे की रुचि इस बात को जानने में ज्यादा हो गई कि उम्र के साथ-साथ और कैसे-कैसे चिंतन में परिवर्तन होते हैं। जिससे पियाजे अपने नैतिक विकास की रिसर्च को अधूरा छोड़कर संज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में रिसर्च करने लगे और अपना विस्तृत संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत दिया।

पियाजे की अधूरी रिसर्च को देखकर ही कोहलबर्ग ने नैतिक विकास पर अपनी रिसर्च प्रारंभ की और अपना खुद का नैतिक विकास का सिद्धांत विकसित किया।

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कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत से संबंधित कुछ शब्दावलियां-

नैतिकता क्या है? –

सही या गलत और अच्छे या बुरे की पहचान और समझ जो सामाजिक मानकों के अनुसार व्यक्ति के निर्णयों को सामाजिक रूप से समुचित , सटीक और बेहतर बनाती है।

नैतिक विकास क्या है?-

बेरोन के अनुसार, “ नैतिक विकास से तात्पर्य बढ़ती उम्र के साथ विभिन्न क्रियो के सही या गलत होने के बारे में सोचने की क्षमता में परिवर्तन से होता है।”

  • नैतिक विकास एक ऐसा विकास है जिसमें बच्चे सही तथा गलत व्यवहार के बीच अंतर करके उनके अनुरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन करते हैं।
  • नैतिक विकास में बच्चे समाज के कुछ ऐसे नियमों को सिखाते हैं जिनके माध्यम से उन्हें हैं गलत तथा सही व्यवहार के बीच अंतर करने में मदद मिलती है।
  • नैतिक विकास में सीखे गए नियम व्यक्ति के अपने व्यवहार को निर्धारित करते हैं।
  • नैतिक विकास की प्रक्रिया उम्र बीतने के साथ मजबूत होती चली जाती है।

नैतिक द्वंद / दुविधा (Moral Dilemma) –

‘सही और गलत के बारे में डिसीजन ना ले पानी की स्थिति नैतिक दुविधा कहलाती है’

ऐसी स्थिति जिसमें आप फंस जाये और यह डिसाइड ना कर पायें कि क्या करना सही होगा और क्या करना गलत

नैतिक तर्कणा (Moral Reasoning) –

‘सही और गलत के बारे में डिसीजन लेने में शामिल प्रक्रिया को नैतिक तर्कणा कहते हैं।’

कारण और प्रभाव संबंध के साथ सोचना कि क्या सही रहेगा और क्या गलत

कोहलबर्ग का सिद्धांत के आधार कथन-

  1. बालक परिस्थितियों में नैतिक असमंजस (या दुविधा या द्वंद्व) महसूस करता है और उनमें निर्णय लेने हेतु नैतिक तर्कणा करता है जो उसके नैतिक विकास का आधार है।
  2. नैतिक दुविधा के समय हम दिमाग में जो भी सोचते हैं वह चिंतन है जब यही चिंतन कारण और प्रभाव के संबंधन पर हो तो इसे हम नैतिक तर्कणा कहेंगे नैतिक चिंतन नहीं।
  3. नैतिक विकास का आधार नैतिक तर्कणा है अवस्थाओं में प्रगति नैतिक तर्कणा के लक्षणों में परिवर्तन लाती है।

कोहलबर्ग ने नैतिक दुविधा की बहुत सारी कहानियाँ तैयार की और उन्हें अलग-अलग उम्र के बच्चों व्यक्तियों वयस्कों बुजुर्गों को सुनाया और उनसे बहुत सारे प्रश्न पूछ कर उनकी थिंकिंग का विश्लेषण कर अपना नैतिक विकास का सिद्धांत दिया। जिनमें से सबसे प्रसिद्ध डिलेमा हिंज का डिलेमा है। 

हिंज की दुविधा (Heinz’s Dilemma)-

“यूरोप में एक महिला विशिष्ट प्रकार के कैंसर से प्रभावित थी। डॉक्टर के अनुसार मात्र एक ही औषध (drug) ऐसी थी जो उस महिला को कैंसर से छुटकारा दिला सकती थी। एक औषध विक्रेता ने इस औषध को स्वयं ही तैयार किया था और उस औषध को उसकी लागत कीमत (cost price) से दस गुणा अधिक कीमत पर वह बेच रहा था। उस औषध की लागत कीमत 2000 रुपए थी परंतु वह उसे 20000 रुपए की कीमत पर बेच रहा था। बीमार महिला के पति, जिसका नाम हिंज (Heintz) था, ने कई लोगों और दोस्तों से कर्ज पर रुपए लेने के लिए बहुत प्रयास किया परंतु उसे मात्र 10000 रुपए ही प्राप्त हो सके।

उसने औषध विक्रेता से फिर संपर्क किया और कहा कि इस औषध के नहीं मिलने पर चूँकि उसकी पत्नी मर जाएगी, अतः वह या तो उस औषध को आधी कीमत पर उसे दे दे या फिर आधी कीमत अभी ले ले और आधी कीमत को बाद में भुगतान करने की इजाजत दे। औषध विक्रेता ने हिंज की प्रार्थना को ठुकरा दिया। हिंज बहुत ही निराश हो गया और अगली रात औषध विक्रेता का स्टोर तोड़कर घुस गया और अपनी पत्नी के लिए उस औषध को चुरा लिया। क्या हिंज को ऐसा करना चाहिए था? क्यो? या क्यों नहीं?

हिंज चोरी कर लेता है और जब वह चोरी करके भाग रहा होता है तब उसका दोस्त ब्राउन उसे देख लेता है जो की एक पुलिस ऑफिसर है। ब्राउन को हिंज की रिपोर्ट करनी चाहिए क्यों? या क्यों नहीं?

ब्राउन हिंज की रिपोर्ट कर देता है हिंज को गिरफ्तार कर लिया जाता है हिंज को न्यायाधीश के समझ प्रस्तुत किया जाता है। हिंज को सजा मिलनी चाहिए । क्यों ? क्यों नहीं?

कोहलबर्ग ने तीन Scenes में अलग-अलग उम्र के व्यक्तियों से इस डिलेमा पर प्रश्न पूछे-

Scene-1 हिंज की पत्नी को कैंसर है। इलाज का खर्चा नहीं है। दवाई को वह चोरी कर ले ! क्यों ? या क्यों नहीं?

Dilemma (द्वंद)- मानव जीवन को बचाने के लिए (नैतिक कार्य) चोरी करना (अनैतिक कार्य) सही या नहीं?

Scene-2 हिंज चोरी करता है। जब वह चोरी करके भाग रहा होता है तब उसका दोस्त ब्राउन उसे देख लेता है जो की एक पुलिस ऑफिसर है। ब्राउन को हिंज की रिपोर्ट करनी चाहिए। क्यों ? या क्यों नहीं?

Dilemma- निकट संबंधन के प्रति उत्तरदायित्व या व्यावसायिक उत्तरदायित्व में से क्या चुने? क्यों?, क्यों नहीं?

Scene-3 ब्राउन रिपोर्ट कर देता है हिंज को गिरफ्तार करके न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। उसको सजा मिलनी चाहिए। क्यों?, क्यों नहीं?

Dilemma- सजा का आधार कृत के परिणाम हो या कृत्य की मनसा। क्यों?, क्यों नहीं?

लोगों के उत्तरो का विश्लेषण करके। नैतिक तर्कणा के लक्षणों में आने वाले परिवर्तनों को आधार बनाकर कोहलबर्ग ने नैतिक विकास को 3 स्तरों (3 Levels) और 6 अवस्थाओं (6 Stages) में वर्गीकृत किया।

कोहलबर्ग के नैतिक विकास सिद्धांत के स्तर और अवस्थाएं-

  1.  पूर्व परंपरागत स्तर/ प्राक् रूढिगत स्तर (Pre conventional level) 
  2.  परंपरागत स्तर/ रूढिगत स्तर (Conventional level) 
  3.  उत्तर परंपरागत स्तर/ उत्तर रूढिगत स्तर (Post conventional level)

 

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत
कोहलबर्ग की नैतिक विकास की अवस्थाएँ

 पूर्व परंपरागत स्तर/ प्राक् रूढिगत स्तर (Pre conventional level) –

पूर्व परंपरागत क्यों? –

  1. क्योंकि इस स्तर पर बालक के नैतिक निर्णय वैयक्तिक (Individualistic) और अहंकेंद्रित (Ego-centric) होते हैं अतः सामाजिक परंपरागत समावेशन का अभाव होता है।
  2. मूल्य सामाजिक परंपराओं के अनुकूल नहीं है इसलिए पूर्व परंपरागत नैतिकता

इस स्तर में नैतिक तर्कणा (Moral Reasoning) दूसरे लोगों के मानकों से निर्धारित होती है ना कि सही तथा गलत के अपने आंतरीकृत मानकों से। बच्चे यहां किसी भी व्यवहार को अच्छा या बुरा उसके भौतिक परिणाम (Physical consequences) के आधार पर कहते हैं‌।

यानी इस स्तर पर नैतिक तर्कणा का आधार बालक के बाहर है।

Stage-1 दंड एवं आज्ञाकारिता उन्मुखता (Punishment and Obedience Orientation) –

नैतिक तर्कणा के आधार (Basis of moral reasoning)

  1. वयस्कों तथा सत्ताधारियों का आज्ञा पालन
  2. दंड से बचाना तथा उस कृत को अनैतिक मानना जिसके लिए दंड मिले।

इन दो आधारों पर ही बच्चा यह चुनाव करता है कि कोई कृत्य उसे करना चाहिए या नहीं करना चाहिए।

Stage-2 व्यक्तिकता और आदान-प्रदान उन्मुखता (Individualisation and Fair Exchange Orientation) / यांत्रिक उद्देश्य अभिविन्यास (Instrumental Purpose Orientation)

  1. परम सत्य जैसी कोई संकल्पना नहीं होती। ( इससे पहले बड़े जो कुछ भी बता देते थे बच्चा उन्हें सत्य मान लेता था)
  2. सब लोग अपने व्यक्तिगत लाभ को प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र हैं।
  3. नैतिक तर्कणा व्यक्तिगत आवश्यकताओं और मांगों पर केंद्रित होती है तथा न्याय संगत आदान-प्रदान (एक हाथ ले एक हाथ दे) को स्वीकार करती है।
  4. दंड अवबोधन जारी है। यानी बच्चा अभी भी दंड मिलने वाले कृत्यों को अनैतिक मानता है।
  5. इस अवस्था के बच्चे अपना फायदा देखते हैं।

 परंपरागत स्तर/ रुढ़ीगत स्तर (Conventional level)

  1. नैतिक तर्कणा का आधार सामाजिक अपेक्षाएं (Expectations) और स्वीकार्यता (Acceptance) हो जाती है।
  2. बालक सामाजिक परंपराओं अर्थात सामाजिक मूल्य , सामाजिक मानक , सामाजिक संरचना आदि को समझने और स्वीकारने लगता है अतः नैतिकता परंपरागत हो जाती है।
  3. इस स्तर पर नैतिकता का प्रभुत्व आंतरिक है किंतु नैतिक तर्कणा बाह्य है। यानी बच्चा चिंतन करके स्वयं चुनता है लेकिन स्वयं चुनने में अभी भी जो आधार है, तर्कणा है वह बाह्य होती है।

इस स्तर के बच्चे दूसरों के मानकों को अपने में आंतरीकृत करते हैं तथा उन्ही मानकों के अनुसार सही तथा गलत का निर्णय करते हैं। बच्चे यहां उन सभी क्रियो को सही समझते हैं जिससे दूसरों की मदद होती है तथा दूसरे लोग उसे अनुमोदित करते हैं या जो समाज के नियमों के अनुकूल होती हैं।

Stage-3 अच्छा लड़का अच्छी लड़की अभिविन्यास (Good Boy Good Girl Orientation) / अच्छे अंर्तवैयक्तिक संबंध अभिविन्यास (Good Interpersonal Relationship Orientation)

  1. बालक प्राथमिक सामाजिक विकास को प्राप्त कर चुका है तथा समुदाय और दोस्तों की अपेक्षाएं (निकट संबंधी लोगों) उसकी नैतिक तर्कणा का आधार होती है।
  2. बालक उन कृतियों का चुनाव करता है जो संबंध के अनुसार या नजदीकी सामाजिक सदस्यों की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं।

Stage-4 कानून तथा सामाजिक क्रम नियंत्रक अभिविन्यास (Law and Social order maintaining orientation) –

  1. जैसे-जैसे बालक सामाजिक रूप से परिपक्व होता है वह सामाजिक मानकों को स्वीकार करते हुए उनके अनुसार कृत्य करता है। ( Stage-3 मैं उसका चिंतन व्यापक नहीं हुआ था उसका चिंतन सिर्फ उसके तात्कालिक समाज से बंधा हुआ था जबकि यहां पर उसके चिंतन में , तर्कणा में समाज की संकल्पना व्यापक हो जाती है।)
  2. नैतिक तर्कणा में सामाजिक संकल्पना की व्यापकता आती है।
  3. जिससे बालक नियम और कानून मानने लगते हैं तथा कानून और व्यवस्था लागू करने वाली संस्थाओं का सम्मान करते हैं।
  4. बालक सामाजिक भूमिकाओं तथा उनसे जुड़े उत्तरदायित्वों को स्वीकारता है।

 उत्तर परंपरागत स्तर/ उत्तर रूढिगत स्तर (Post conventional level) 

  1. नैतिक तर्कणा का आधार व्यक्तिवादी तथा न्याय संगत सिद्धांतों पर आधारित चिंतन (अमूर्त) होता है।
  2. व्यक्ति परंपराओं पर प्रश्न उठाता है अर्थात सामाजिक मानकों पर प्रश्न उठाता है तथा समाज में बदलाव और सुधार की बात करता है तथा नैतिकता उत्तर परंपरागत हो जाती है।
  3. इस स्तर पर निर्णय की सत्ता और नैतिक तर्कणा का पूर्ण आंतरीकरण हो जाता है। यानी व्यक्ति दूसरों के विचारों से नहीं बल्कि खुद के मानकों के अनुसार व्यवहार करता है।

Stage-5 सामाजिक अनुबंध(संविदा) तथा व्यक्तिगत अधिकार अभिविन्यास ( social contract and individual rights orientation)

  1. व्यक्ति ये मानता है कि समाज एक सामाजिक अनुबंध (Social contract) है तथा इस अनुबंध में प्रत्येक व्यक्ति को कुछ मौलिक अधिकार मिलने चाहिए जैसे जीवन, स्वतंत्रता , शिक्षा आदि।
  2. प्रत्येक सभ्य समाज में एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया होनी चाहिए जिसके द्वारा रुढ़िवादी अमानवीय और पुराने मानकों को बदला जा सके।

Note- शुरुआत में कोहलबर्ग ने 5 अवस्थाएं ही दी थी फिर बाद में उन्होंने छठी अवस्था की संकल्पना दी। कोहलबर्ग ने कहा बदलाव की बात करने वाले तो बहुत लोग हैं लेकिन वह कौन है जो स्वयं बदलता है और समाज को अपने साथ बदल सकता है। वे समाज में नैतिकता के उदाहरण बनते हैं समाज में नैतिकता का संचार करते हैं। वे सिर्फ बदलाव की बात नहीं करते वह खुद बदलकर दुनिया को बदलने की संकल्पना देते हैं।

Stage-6 सार्वभौमिक सिद्धांत उन्मुखता ( Universal principal orientation)

  1. व्यक्ति जो न केवल सुधारो (Reforms) को खुद पर प्रयोग करते हैं अपितु वह अपना जीवन समाज में सुधारो (Reforms) के प्रचार , प्रसार तथा लागू होने के लिए न्यौछावर कर देते हैं ।
  2. इस अवस्था के व्यक्ति सबका भला देखते हैं तथा अपने जीवन की परवाह किये बिना दूसरों का भला करते हैं।
  3. वे उदाहरण बन जाते हैं महात्मा गांधी, रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह , विवेकानंद आदि की तरह।

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत की आलोचनाएं-

  1. कोहलबर्ग के सिद्धांत में नैतिक तर्कणा (या न्याय) का आधार पितृसत्तात्मक सामाजिक मानक है। यानी इस सिद्धांत में लिंग पूर्वाग्रह (gender bias) है। (Carol Gilligan)
  2.  कोहलबर्ग का सिद्धांत संस्कृति मुक्त नहीं है। इस सिद्धांत में पश्चिमी सांस्कृतिक पूर्वाग्रह (cultural bias) है। यह अमेरिकी संस्कृति पर आधारित है।
  3. कोहलबर्ग का सिद्धांत बंद समाज को समाहित नहीं करता है। यह लोकतांत्रिक समाजों से पूर्वाग्रहित है।
  4. कई विकासात्मक मनोवैज्ञानिकों का मत है कि कोहलबर्ग का सिद्धांत काफी सीमित है क्योंकि नैतिकता कोई काल्पनिक दुविधा (hypothetical dilemma) के बारे में मात्र सोचने से कहीं कोई बड़ी चीज होती है। सचमुच में नैतिक तर्कणा तथा नैतिक व्यवहार एक ही चीज ना होकर भिन्न चीज है। नैतिक तर्कणा से हमेशा नैतिक व्यवहार उत्पन्न ही होगा ऐसा नहीं कहा जा सकता है। समाज में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनकी नैतिक तर्कणा उतनी मजबूत नहीं है परंतु फिर भी उत्तम एवं उच्च नैतिक व्यवहार करते हैं।

कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत से संबंधित प्रश्न –

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सारांश- इस पोस्ट कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत के माध्यम से कोहलबर्ग का सामान्य परिचय , कोहलबर्ग के सिद्धांत से संबंधित महत्वपूर्ण शब्दावलियों (जैसे- नैतिकता, नैतिक विकास , नैतिक द्वंद , नैतिक तर्कणा) , हिंज की दुविधा (Heinz’s Dilemma), नैतिक विकास के स्तर और अवस्थाओं, कोहलबर्ग के सिद्धांत की आलोचनाओं आदि को विस्तार से समझा।

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