Jeen Piyaje Ka Siddhant (Part-4) जीन पियाजे का सिद्धांत

सभी पाठकों को मेरा नमस्कार!, पिछली पोस्ट Jeen Piyaje Ka Siddhant  (Part-3) मैं हमने ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया और उससे जुड़ी शब्दावली – साम्यावस्था (Equilibrium State) , असंतुलन की अवस्था (Disequilibrium State) , अर्जन (Acquisition) , समावेशन (Assimilation) , समायोजन (Accommodation) , अनुकूलन (Adaptation) , सम्यधारण (Equilibration) को विस्तार से समझा। आज इस पोस्ट Jeen Piyaje Ka Siddhant (Part-4)  में हम संज्ञानात्मक विकास के लिए जीन पियाजे के द्वारा दी गई चारों अवस्थाओं और उनकी विशेषताओं को विस्तार से समझेंगे। नीचे चित्र में इन चारों अवस्थाओं और उनकी विशेषताओं को माइंड मैप की सहायता से दर्शाया गया है इसे ध्यान से देखें, जीन पियाजे का सिद्धांत , Jeen Piyaje Ka Siddhant

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Note– जीन पियाजे के सिद्धांत से संबंधित प्रश्नों की pdf प्राप्त करने के लिए आप मेरे टेलीग्राम चैनल से जुड़ सकते हैं- यहां क्लिक करें

संज्ञानात्मक विकास का अवस्था सिद्धांत (Stage Theory of Cognitive Development) – (Jeen Piyaje Ka Siddhant) 

  • संज्ञानात्मक विकास मस्तिष्क की संक्रियाओं के प्रगतिशील गुणात्मक परिवर्तन और वृद्धि के कारण होता है।
  • संज्ञानात्मक विकास चार क्रमागत अवस्थाओं में अग्रसर होता है।
  • अवस्थाएं विविधता हीन है अर्थात यह हमेशा एक समान क्रम में घटित होगी और कोई भी अवस्था छूट नहीं सकती है।
  • अवस्थाएं सार्वभौमिक है तथा प्रत्येक बालक में, सभी स्थानों पर पायी जाएंगी।

Jeen Piyaje Ka Siddhant संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएं देता हैं जो इस प्रकार है-

(1) संवेदी गामक संक्रियात्मक अवस्था (Sensory – Motor operational stage) (जन्म – 2 वर्ष) 

(2) पूर्व- सक्रियात्मक अवस्था (Pre- operational stage) (2-7 year)

(3)  मूर्त – संक्रियात्मक – अवस्था (Concrete – operational Stage) (7-11 वर्ष) 

(4) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (Stage Formal – operational stage) (11 वर्ष के उपरान्त) 

 

(1) संवेदी गामक संक्रियात्मक अवस्था (Sensory- Motor operational stage ) {जन्म – 2 वर्ष}

Jeen Piyaje Ka Siddhant , sensory motor stage

संवेदी गामक क्यों? ( why Sensory Motor?) –

इस अवस्था में संक्रियाएं मस्तिष्क आधारित संक्रियाओं से न चलकर संवेदी सूचनाओं की प्राप्ति या आगत ( Input) पर आधारित होती है तथा इनका परिणाम गामक प्रतिक्रिया या अनुक्रिया होती है इसलिए इसे हम संवेदी गामक अवस्था कहते हैं।

(संवेदी सूचनाऐ – ज्ञानेंद्रिय से प्राप्त होने वाली सूचनाऐं)

परीक्षण (Test) – गेंद और कंबल परीक्षण (Ball and blanket test)                                                       

इस अवस्था की शुरुआत में बच्चा एक कमी या कठिनाई महसूस करता है – दृष्टि से ओझल तो दिमाग से ओझल (Out of sight is out of mind) यानी जब बालक की दृष्टि उसे संवेदना देना बंद कर देती है तो उसका मस्तिष्क उस वस्तु पर चिंतन करना बंद कर देता है। धीरे-धीरे वस्तु स्थायित्व आने के बाद यह कमी या कठिनाई दूर हो जाती है।

इसको टेस्ट करने के लिए पियाजे गेंद और कंबल परीक्षण करते हैं बच्चे को गेंद दिखाते हैं और कंबल में छुपा देते हैं यदि बच्चा गेंद ढूंढने का प्रयास नहीं करता तो वस्तु स्थायित्व नहीं आया है यदि करता है तो वस्तु स्थायित्व की शुरुआत है।

संवेदी उन्मुखीकरण (Sensory Orientation) –

संवेदी सूचनाऐं गामक व्यवहार के साथ जुड़ती जाती हैं बालक संवेदी गामक स्कीमा का निर्माण करता है जो भाषाहीन होता है।

छोटे बच्चों को कोई भी चीज दिखती है तो वह उसके प्रति गमक प्रतिक्रिया देता है यानी उसको पकड़ने उसके साथ खेलने का प्रयास करता है जिससे धीरे-धीरे यह अनुक्रिया उस वस्तु के साथ जुड़ती जाती है फिर उसी तरह की वस्तु देखने पर बालक वही प्रक्रिया देता है।

   संवेदी चिंतन ( Sensory Thinking) –             

 इस अवस्था में चिंतन संवेदी सूचनाओं के आधार पर व्यवहारात्मक प्रतिक्रिया देने तक ही सीमित होता है इस तरह के चिंतन को पियाजे संवेदी चिंतन कहते हैं।

गामक उन्मुखीकरण ( Motor Orientation) –         

इस अवस्था में उद्दीपक से आने वाली संवेदी सूचनाऐं बालक को प्राप्त होती है तो वह उसके प्रति अनुक्रिया देता है जो मुख्यतः गामक होती है। जैसे- बालक को कोई चीज दिखेगी तो उसे पकड़ने की कोशिश करेगा उसे कोई तेज आवाज सुनाई देगी तो एकदम से हाथ पैर चलाएगा।

  • गमक उन्मुखीकरण बालक के मस्तिष्क को शरीर की गतिशीलता पर नियंत्रण और समन्वय (Control and Coordination) प्रदान करता है । अतः गतिशीलता धीरे-धीरे ऐच्छिक होती जाती है होती जाती है।

अनुकरण (Imitation) – 4-8 माह में प्रारम्भ

प्रेक्षित व्यवहार को अपनी अनुक्रिया या व्यवहार के रूप में पुर्नोत्पादित (दोहराना) करना।

लक्ष्य निर्देशित व्यवहार (Goal Oriented behavior)-किसी चीज की प्राप्ति के लिए कि जाने वाली अनुक्रिया या व्यवहार

वस्तु स्थायित्व (Object permanence) –

शुरुआत– 8 से 12 माह

पूर्ण क्षमता– 18 से 24 माह

वस्तु स्थायित्व की प्राप्ति से पहले- दृष्टि से ओझल तो दिमाग से ओझल

वस्तु स्थायित्व की प्राप्ति के बाद- दृष्टि से ओझल लेकिन दिमाग से ओझल नहीं

यानी जब संवेदी अंग किसी चीज के बारे में सूचनाऐं देना बंद कर दें उसके बावजूद हम उस चीज को अपने मस्तिष्क में निरूपित कर पाए यही वस्तु स्थायित्व है।

  • यही वस्तु स्थायित्व हमारे मस्तिष्क मैं सभी प्रकार की स्मृति का आधार है
  • वस्तु स्थायित्व की शुरुआत में वस्तु को जहां पहली बार छुपाया गया बालक वहां खोजने का प्रयास करता है वस्तु का स्थान फिर से बदलने पर वह नहीं खोज पाता पूर्ण रूप से वस्तु स्थायित आ जाने पर बालक छुपाई गई वस्तु को विभिन्न स्थानों पर खोजने की क्षमता विकसित कर लेता है।

विश्वास रूपी खेल (Make belive play) –

बालक दैनिक गतिविधियों या काल्पनिक गतिविधियों का अभिनय खेल करते हैं। जैसे- घर-घर खेलना

(2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (Pre – Operational Stage) – (2-7 वर्ष) 

पिछली अवस्था में हमने नया-नया वस्तु स्थायित्व प्राप्त किया हमारी मेमोरी बहुत अच्छे से चीजों को स्टोर करने के लिए अभी तैयार नहीं है हमारे मस्तिष्क की संरचनाएं अभी भी कट छट रही होती हैं इसलिए हमें किसी चीज को याद रखने के लिए बार-बार उसे दोहराना पड़ता है ऐसा हमें लगभग 1.5 वर्ष से 4 वर्ष तक करना पड़ता है हम कविताओं को बार-बार दोहरा कर याद करते हैं। 

पूर्व संक्रिया क्यों? – क्योंकि इस अवस्था में बालक तार्किक संक्रियाएं नहीं कर पता है लेकिन मूर्ति तार्किक संक्रियाओं की आधारभूत संक्रियाएं इसी अवस्था में विकसित होती हैं अतः इसे पूर्व संक्रियात्मक अवस्था कहा है।

तार्किकता– कारण के साथ समालोचना

किसी भी घटना या वस्तु पर बात करते समय उसके सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए करणो के साथ बात करना

‘ऐसा है तो क्यों है ऐसा नहीं है तो क्यों नहीं है’

परीक्षण (Test) – तीन पर्वत परीक्षण ( Three mountain test) Three Mountain Test Jean Piaget

इस अवस्था में पियाजे बालक के चिंतन को समझने के लिए तीन पर्वत परीक्षण करते हैं। एक बालक को यह तीनों पर्वत तीन अलग-अलग view point से दिखाते हैं 1st view से दिखाने पर बालक को एक पर्वत दिखता है 2nd view से दिखाने पर बालक को दो पर्वत दिखते हैं 3rd view से दिखाने पर बालक को तीन पर्वत दिखते हैं। तीनों view point से दिखाने के बाद बालक को फिर से यही तीन पर्वत 1st view से दिखाए जाते हैं और पूछा जाता है कितने पर्वत है-

यदि उत्तर 1 पर्वत है- दूसरी अवस्था का बालक

यदि उत्तर 3 पर्वत है- तीसरी अवस्था का बालक

Stage-2 का बालक– बच्चा तीन पर्वत देख चुका है उसके मस्तिष्क में मूर्त रूप से वस्तु स्थायित्व की वजह से तीन पर्वत है पर उसे सामने से एक पर्वत दिख रहा है वह भावी प्रत्यक्षीकरण को महत्व देकर एक पर्वत उत्तर देता है।

Stage-3 का बालक– बच्चें को एक पर्वत दिख रहा है पर उसका मूर्त चिंतन उसको बताता है कि यह वही वाले तीन पर्वत है तर्क कर पा रहा है तीन पर्वत उत्तर बताएगा।

एक आयामी चिंतन (One Dimensional Thinking) किसी वस्तु के एक से अधिक आयाम होते हैं जैसे- लंबाई चौड़ाई आयतन आकर आदि। इस अवस्था का बालक एक बार में किसी एक आयाम पर ही चिंतन कर पता है।

  • बालक द्वारा कार्यात्मकता हेतु किसी एक प्रभावी स्कीमा का प्रयोग

केंद्रिकता (Centrism) – एक आयामी चिंतन के कारण बालक केवल एक पक्ष या एक आयाम या एक पहलू के आधार पर ही किसी परिस्थिति या समस्या में चिंतन करता है। और यह एक आयाम वह अपनी मर्जी अपनी पसंद के अनुसार चुनता है- अहमकेन्द्रण

आत्मकेंद्रिता / अहमकेन्द्रण (Egocentrism)-

केवल स्वयं के दृष्टिकोण से चिंतन और कार्यात्मकता तथा बालक द्वारा दूसरों के दृष्टिकोण को स्वीकार न करना।

  • अहंकेंद्रण जरूरी होता है क्योंकि यह व्यक्ति को उसकी आवश्यकताओं के प्रति जागरूक करता है हम धीरे-धीरे इसको सामाजिक तौर पर नियंत्रित करने लगते हैं।

भावी प्रत्यक्षीकरण (Perceptual Domination)-केंद्रिकता के कारण बालक द्वारा चिंतन में संवेदी संकल्पनाओं को वस्तु स्थायित्व स्कीम्स के ऊपर प्राथमिकता प्रदान करना।                                                                यानी जो उसके दिमाग में पहले से है उसको वो प्राथमिकता नहीं देता उसे जो सामने से दिख रहा होता है उसको प्राथमिकता देता है जैसा कि तीन पर्वत परीक्षण में हुआ।

उदाहरण– आपको बच्चे को खिलौना नहीं दिलाना है तो पहले उसकी आंखों के सामने से वह खिलौने की दुकान हटाओ अगर वह वहां रहेगा तो यह हो ही नहीं सकता कि वह खिलौना के अलावा कुछ और बात करें उसे कहीं और ले जाओ और उसका ध्यान किसी और चीज में लगाओ।

पारगमनात्मक चिंतन ( Transductive Thinking) –

वस्तु स्थायित्व बालक को कार्यात्मक स्कीमा अर्थात कार्य सूचनाओं के क्रम को प्रदान करता है लेकिन कैसे काम होगा इसको तार्किक या कथन रूप में व्याख्या नहीं कर पता है लेकिन कार्य को संपादित कर देता है इस प्रकार के चिंतन को पारगमनात्मक चिंतन कहते हैं।

  • यानी बच्चा शुरुआत और अंत बता पता है पर बीच की प्रक्रिया की व्याख्या नहीं कर पाता यानी तर्क नहीं दे पता है कि ऐसा कैसे हुआ।
  • ऐसा हमारे साथ भी कई बार होता है कि हमसे कोई प्रश्न पूछा जाता है तो हम उसका उत्तर तो दे पाते हैं पर यह नहीं बता पाते की ये उत्तर कैसे आया उसकी व्याख्या हम नहीं कर पाते
  • वयस्कों में इसे अतः प्रज्ञान ( Intuition) कहते हैं।

अतः प्रज्ञान / अतः प्रज्ञानात्मक चिंतन (Intuition  / Intuitive Thinking) –

  • पारगमनात्मक चिंतन की सहायता से अहंकेंद्रित निर्णय लेना जिसमें निर्णय हेतु तार्किक व्याख्या नहीं दे पाना।
  • बच्चा अपने मस्तिष्क में उपस्थित स्कीमा के आधार पर उत्तर देता है पर उसमें उसे स्कीमा को Explain करने की क्षमता नहीं होती है

जीववाद ( Animism)-                                          जीव और निर्जीव कि अहंकेंद्रित संकल्पना जो पारगमनात्मक चिंतन पर आधारित है।

बच्चा निर्जीव चीजों को भी सजीव समझता है।         आधार (basis)-

  1.  जैसा बड़े या साथी बताते हैं।
  2.  जिनका आकार स्वरूप गतिशीलता जीवों की तरह प्रतीत होती है।
  3. स्वचालित वस्तुएं

अनपलटावली ( अर्थात पलटवाली का अभाव) Irreversibility ( Lack of Reversibility) –

जब हमने स्कीमा की चर्चा की थी तो मैं वहां स्कीमा के लक्षणों को बताना भूल गया था उन्हें मैं यहां बताता हूं-

स्कीमा के लक्षण-

  1. क्रमणशीलता (Order)
  2. पलटावली/ व्युत्क्रमणशीलता (Reversibility) 

क्रमणशीलता (Order)- जिस क्रम में स्कीमा निर्माण हुआ है उसी क्रम में प्रयोग। 

पलटावली/ व्युत्क्रमणशीलता (Reversibility)-

  • स्कीमा को उलटने पलटने की क्षमता अर्थात तोड़कर प्रयोग करने या व्युत्क्रम (उल्टा क्रम) में प्रयोग करने की क्षमता
  • चिंतन को स्कीमा की किसी भी एक सूचना से प्रारंभ करने की क्षमता

2nd Stage के बच्चे के पास क्रमणशीलता तो होती है पर पलटवाली नहीं होती है । बच्चा जिस क्रम में स्कीमा का निर्माण करता है उसी क्रम में स्कीमा को समझ पाता है। स्कीमा के व्युत्क्रम या बीच की किसी भी सूचना का प्रयोग करने पर उसे समझ नहीं पता है।

उदाहरण– बच्चों को पहाड़े याद है उससे पूछा 5×6 तो वह Direct 30 नहीं बता पता उसे 1 से लेकर 6 तक पहाड़ा पढ़ना पड़ता है। यानी वह स्कीमा को किसी भी बीच की सूचना से स्टार्ट नहीं कर पा रहा है।

इसीलिए इस अवस्था के बच्चों को उल्टी गिनती और ऐसी बहुत सारी गतिविधियां कराई जाती हैं जिससे उनमें पलटावली का विकास किया जा सके।

संधरण का अभाव (Lack of Conservation)-

इस समझ का अभाव की आकार, स्वरूप, या संरचना में बदलाव संख्या, द्रव्यमान, आयतन या भार में बदलाव नहीं लाता

उदाहरण-

  1. पांच गोलियां ली उनको पास पास रखा वैसे ही पांच गोलियां को दूर-दूर रखा संधरण के अभाव में बच्चा दूर-दूर रखी गोलियों को ज्यादा बतायेगा जबकि संख्या समान है
  2. कोल्ड ड्रिंक को बच्चे को एक चौड़े बर्तन में दिया बच्चा रोने लगा कि कोल्ड ड्रिंक कम है तो इस कोल्ड ड्रिंक को एक पतले और लंबे बर्तन में पलट कर बच्चों को दे दिया बच्चा खुश हो गया कि उसे ज्यादा कोल्ड ड्रिंक मिल गई जबकि कोल्ड ड्रिंक उतनी ही है।

संधरण का अभाव क्यों? –

क्योंकि इस अवस्था में बालक एक आयामी चिंतन कर पता है इसलिए वह एक समय में किसी वस्तु के एक आयाम पर ही चिंतन कर पता है। वह दो वस्तुओं की तुलना कर रहा है तो वह या तो केवल लंबाई को देखेगा यह केवल चौड़ाई को दोनों पर एक साथ चिंतन नहीं कर पाता।

प्रतीकात्मक प्रदर्शन (Symbolic Expression) –

स अवस्था का बालक मानसिक निरूपण को भाषा आधारित विचारों में प्रदर्शित कर पता है। यानी उसके मस्तिष्क में किसी चीज की जो इमेज बनी है उसको वह भाषा के जरिए Explain करने लगता है। 

(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage)– {7-11 वर्ष }

Concert operational stage, मूर्त संक्रियात्मक अवस्था

उपलब्धि (Achievement) – संधरण Conservation

परीक्षण (Test) – संधरण प्रदत्त कार्य Conservation task

  1. संख्या का संधरण- कुछ सिक्के लिए और उनको पास पास रखा उतनी ही संख्या में और सिक्के लेकर उनको दूर-दूर रखा और बच्चे से पूछा कौन से सिक्के ज्यादा है यदि बच्चा दूर-दूर रखें सिक्कों को ज्यादा बताता है तो संधरण की प्राप्ति नहीं हुई है दोनों सिक्कों को बराबर बताता है तो संधरण की प्राप्ति हो गई है
  2. द्रव्यमान / पदार्थ का संधरण- दो समान आकार की आटे की लोई ली उनमें से एक को बच्चों के सामने बेलकर रोटी बना दी बच्चों से पूछा कि किस में आटा ज्यादा है संधरण की प्राप्ति हो गई होगी तो बच्चे का उत्तर होगा कि दोनों में बराबर आटा है यदि संधरण की प्राप्ति नहीं हुई होगी तो जो बच्चा ऊंचाई को देखेगा वह लोई में ज्यादा आटा बतायेगा और जो क्षेत्रफल को देख रहा होगा वह रोटी में ज्यादा आटा बतायेगा जबकि दोनों में आटा बराबर है। 
  3. तरल (Liquid) का संधरण- दो समान आकार के बर्तन लिए और उनमें समान मात्रा में पानी भरा अब उनमें से एक बर्तन को एक लंबे बर्तन में पलट दिया बालक से पूछने पर की किस में ज्यादा पानी है . … Conservation test, जीन पियाजे का सिद्धांत

बहुआयामी चिंतन ( Multidimensional thinking) –

किसी वस्तु या समस्या के सभी पहलुओं / आयामो / लक्षणों पर एक साथ चिंतन कर पाने की क्षमता

विकेंद्रिकता (Decentring) – 

पिछली अवस्था का बालक किसी वस्तु या समस्या के एक पहलू या आयाम पर केंद्रित हो जाता था सिर्फ उस पर ही चिंतन कर पता था । इस अवस्था के बालक में किसी वस्तु या समस्या के विभिन्न लक्षणों पर अलग-अलग चिंतन करने की क्षमता आ जाती है जो उसे किसी वस्तु या समस्या की समग्र समझ बनाने में सहायता करती है। 

संधरण / संरक्षण (Conservation) – 

  • विभिन्न सूचनाओं को मस्तिष्क में धारण करने के उपरांत उन पर आधारित बहुआयामी या बहु दृष्टिकोणीय चिंतन की क्षमता। 
  • अवबोधन की क्षमता की आकार , संरचना , स्वरूप के बदलने पर भी संख्या, द्रव्यमान, आयतन , भार में परिवर्तन नहीं होता है। 

व्युत्क्रमणीयता / पलटावली (Reversibility) –

  • स्कीमा को उलटन -पलटने की क्षमता अर्थात तोड़कर प्रयोग करने या व्युत्क्रम में प्रयोग करने की क्षमता
  • चिंतन को स्कीमा की किसी भी एक सूचना से प्रारंभ करने की क्षमता आ जाती है। 

संदर्भीकरण (Contextualization) –

आपके सामने कोई समस्या आई आप समस्या के सभी पहलुओं पर चिंतन कर रहे हैं पर उस समस्या के हल के लिए समस्या का जो पहलू आवश्यक (जिसे संदर्भ कहेंगे) है उस पर चिंतन हेतु ध्यान केंद्रित करना

तार्किक विचार प्रक्रिया (logical thought process)

संधरण , विकेंद्रिकता और संदर्भीकरण  से किसी स्कीमा, कार्य , विचार या निर्णय की तार्किक व्याख्या कर पाते हैं। 

यानी इस अवस्था में तार्किक चिंतन विकसित हो जाता है। 

तार्किकता-  कारण  के साथ समालोचना

किसी भी घटना या वस्तु पर बात करते समय उसके सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए करणो के साथ बात करना

‘ऐसा है तो क्यों है ऐसा नहीं है तो क्यों नहीं है’

श्रेणीकरण (Striation) / पदानुक्रमिया वर्गीकरण (Hierarchical classification) –

वस्तुओं को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित करने की क्षमता

सादृश्यता (Analogy) – विकेंद्रिकता के आधार पर दो या दो से अधिक वस्तुओं या लक्षणों या विचारों में समानता और भिन्नता की पहचान करने की क्षमता । 

वर्गीकरण (Classification) – सादृश्यता ( समानता और भिन्नता) के आधार पर वस्तुओं या लक्षणों या विचारों को वर्गों में विभाजित करने की क्षमता। 

मूर्त चिंतन (concrete thinking) –

बालक अपने आसपास के मूर्त जगत से संबंधित सभी सूचनाओं के अर्जन , प्रक्रमण और अवबोधन की क्षमता को विकसित कर लेता है। 

ऐसी वस्तुएं जिन्हें हम छू सकते हैं जिन्हें हम देख सकते हैं जिन्हें महसूस कर सकते हैं वह सभी मूर्त वस्तुएं हैं। इन्हीं मूर्त वस्तुओं से हमारी ज्ञानेंद्रिय जो सूचनाऐं प्राप्त करती हैं उन्हें मूर्त सूचनाऐं कहते हैं। इन्हीं मूर्त सूचनाओं को मस्तिष्क में आधारित करके हम मूर्त संकल्पनाएं (Concept) बनाते हैं। इन्हीं मूर्ति संकल्पनाओं के आधार पर हम जो चिंतन करते हैं उसे मूर्त चिंतन कहते हैं। 

(4) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (Formal – operational stage)- {11 वर्ष के उपरान्त}

विकास जीवन पर्यंत चलता है विकास अनंत है। अर्थात संज्ञानात्मक विकास भी कभी पूर्ण नहीं होता जीवन पर्यंत चलता रहता है ।  कोई व्यक्ति कितनी संक्रियाएं सीखेगा यह उस पर निर्भर करता है वह कितना अपने मस्तिष्क का विकास कर सकता है यह उस पर निर्भर करता है। Formal operational stage, Jeen Piyaje Ka Siddhant

अमूर्त (Abstract)- 

  • जो विचार या अवबोधन मूर्तता अर्थात प्रत्यक्ष अनुभव अर्थात ज्ञानेंद्रिय सूचनाओं से प्राप्त नहीं हुआ हो। 
  • भाषाई चिंतन से प्राप्त विचार (Thought) या अवबोधन (Understanding) 

साधारण शब्दों में कहें तो वे सभी विचार जिनके बारे में सूचनाऐं हमें हमारी ज्ञानेंद्रिय से प्राप्त नहीं हुई है यानी जिनके बारे में सूचनाऐं हमने प्रत्यक्ष अनुभव से प्राप्त नहीं की हैं वह सभी विचार अमूर्त विचार हैं। 

अमूर्त चिंतन (Abstract Thinking) / औपचारिक चिंतन  (Formal Thinking) –

  • मूर्त संदर्भों के अभाव या अनुपस्थिति में चिंतन करने की क्षमता
  • परिस्थिति का पूर्व चिंतन या आभासी चिंतन करने की क्षमता ,  अप्रकट कारकों ( जो सामने दिखाई ना दे) की पहचान और उन पर चिंतन करने की क्षमता
  • जो चीज मूर्त रूप से है ही नहीं उसके चिंतन की क्षमता

अमूर्त कल्पना (Abstract Imagination) –

बिना मूर्त संदर्भों के प्रत्यक्षीकरण की क्षमता अर्थात अमूर्त प्रत्यक्षीकरण की क्षमता यानी ऐसी चीज जिन्हें हमने कभी देखा ही नहीं है उनका चित्र अपने दिमाग में बना पाने की क्षमता। 

परिकल्पना (Hypothesis) –

  • किसी समस्या के समाधान के रूप में की जाने वाली कल्पना परिकल्पना कहलाती है। 
  • किसी समस्या के लिए पूर्व कल्पित ( Pre- Assumed) समाधान

परिकल्पना आधारित निगमनात्मक चिंतन (Hypothetico Deductive Thinking) –

किसी भी परिस्थिति को एक समस्या के रूप में अवबोधित करते हुए निगमन आधारित अमूर्त तर्कणा के साथ उसके समाधान हेतु परिकल्पना निर्माण करना। 

     उदाहरण के लिए आपको कार चलाना आता है कार को चलाने के लिए जो सामान्य नियम है वह आपके दिमाग में है अब आपके सामने एक परिस्थिति आती है कि आपको ट्रैक्टर चलाना है अब आप इस स्थिति को एक समस्या के रूप में लेते हुए कार चलाने के सामान्य नियमों का प्रयोग करके एक परिकल्पना बनाएंगे और उस परिकल्पना को इंप्लीमेंट करके ट्रैक्टर को चलाने का प्रयास करेंगे

कारण प्रभाव संबंध (Cause Effect Relationship) – प्रत्येक परिस्थिति के कारकों की पहचान तथा उनके मध्य  संबंधों की पहचान कि किसी एक कारक में कोई चेंज करने पर दूसरे कारकों पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा

विश्लेषण (Analysis) –

आधार चिंतन – अपसारी चिंतन (Divergent Thinking)

संपूर्ण या समग्र को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके अलग-अलग भागों पर चिंतन करने की क्षमता

Example- किसी साइकिल को पूर्ण रूप से समझने के लिए उसके सभी पार्ट्स को खोल खोल कर अलग-अलग समझना

संश्लेषण (Synthesis) –

आधार चिंतन – अभिसारी चिंतन (Convergent Thinking) 

विभिन्न भागों को एकीकृत कर एक बिंदु या समग्र या संपूर्ण रूप में चिंतन करने की क्षमता

Example- हमने विश्लेषण करके साइकिल के सभी पार्ट्स के बारे में और उनके कार्यों के बारे में समझ लिया हमें पता है की पहिया क्या काम करता है या चेन क्या काम करती है पर क्या इससे साइकिल चल जाएगी साइकिल को चलने के लिए हमें यह समझना होगा की पहिया और चेन साथ में मिलकर क्या काम कर सकते हैं यानी सभी पार्ट्स को एक साथ मिलाकर संपूर्ण आकृति को समझना संश्लेषण है। 

  • यानी किसी चीज के अंदर घुस घुस के उसके सभी हिस्सों को समझना विश्लेषण है और उन समझे गए सभी हिस्सों को एक साथ जोड़कर उस चीज के समग्र रूप को समझना संश्लेषण है

समस्या समाधान क्षमता (Problem Solving Ability) –

समस्या समाधान के चरण –
  1. समस्या की पहचान और परिभाषीकरण
  2. करक विश्लेषण
  3. कारण प्रभाव संबंध
  4. परिकल्पना निर्माण
  5. परिकल्पना का समाधान हेतु प्रयोग
  6. आंकड़े, तथ्य और सूचनाओं का संग्रहण
  7. निष्कर्ष तथा सामान्यीकरण
  • सारांश– इस पोस्ट Jeen Piyaje Ka Siddhant (Part-4) में हमने संज्ञानात्मक विकास की चारो अवस्थाओं  और उनकी विशेषताओं को विस्तार से समझा। अगली पोस्ट Jeen Piyaje Ka Siddhant (Part-5) में हम इस सिद्धांत से संबंधित कुछ अन्य बातें और इस सिद्धांत की आलोचनाओं को समझेंगे। 

नोट-  इस पोस्ट का कोई भी भाग यदि आपको ना समझ आया हो तो कृपया कमेंट करके अवश्य बताएं मैं आप सभी के कॉमेंट्स का रिप्लाई दूंगा और पोस्ट के उस भाग को अपडेट भी कर दूंगा।

Also read:

Jeen Piyaje Ka Siddhant (part-1) 

Jeen Piyaje Ka Siddhant (part-2) 

Jeen Piyaje Ka Siddhant (part-3) 

13 thoughts on “Jeen Piyaje Ka Siddhant (Part-4) जीन पियाजे का सिद्धांत”

  1. आपने जीन पियाजे का postmortem कर दिया
    ♥️♥️
    अद्भुत 👌

    Reply
  2. Thanku kafi acha content hai
    Samjhne me aasan hua
    Aur iske 2 part aur Lana tha
    1. Jean Piaget ke is siddhant ki aalochana
    2. Piaget ki is siddhant ki shaikshik upyogita ya mahatva

    Aur yadi aap is topic pr content tair kr liye hai mujhe avasy avgat karaye
    Dhanyawad

    Reply
  3. Hello sir, jis tarah aapne likha hai bahut hi accha hai…
    Apke pass se complete CDP ki notes issi tarah se likha hua mil jayega kya CTET, Stet ke liye

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