Jean Piaget Theory in Hindi (Part-2) : संज्ञानात्मक विकास

सभी पाठकों को मेरा नमस्कार पिछली पोस्ट  Jean Piaget Theory in Hindi (Part-1) मे हमने जीन पियाजे का सामान्य परिचय, सूचना प्रक्रमण प्रतिमान (Information processing Model), अतिवादी निर्माणवाद(Radical constructivism), निर्माणवाद पर पियाजे के विचार ,भाषा और चिंतन (Language and Thinking) पर पियाजे‌ वाइगोत्सकी और ब्रूनर के विचार के बारे में विस्तार से चर्चा की थी। आज की इस पोस्ट  Jean Piaget Theory in Hindi (Part-2) मैं हम संज्ञानात्मक विकास और उससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण शब्दावलियों जैसे- मानसिक क्षमता (Mental capacity) ,संज्ञानात्मक क्षमता (Cognitive capacity), बौद्धिक क्षमता (Intellectual capacity) , संज्ञान  (cognition) , स्कीमा (schema) , संक्रियाएं (Operations) आदि को विस्तार से समझेंगे। Jean Piaget Theory in Hindi

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  Jean Piaget Theory in Hindi (Part-2) संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) –

  • संज्ञानात्मक विकास को समझने से पहले हमें संज्ञानात्मक विकास से संबंधित सभी शब्दावलियों को समझना होगा।

सबसे पहले हम इन तीन शब्दों को समझते हैं।

1-मानसिक क्षमता 2-संज्ञानात्मक क्षमता 3-बौद्धिक क्षमताJean Piaget Theory in Hindi

इस इमेज को ध्यान पूर्वक देखें और समझने का प्रयास करें।

(1-) मानसिक क्षमता (Mental Capacity)-

हमारा मस्तिष्क दो तरीके के कार्य करता है ऐच्छिक कार्य (Voluntty Actions) और अनैच्छिक कार्य (Involuntary Actions) ।

ऐच्छिक कार्य वह होते हैं जिन्हें हम अपनी इच्छा से करते हैं और जिनके लिए हमें सोचना पड़ता है जैसे-चलना, दौड़ना ,लिखना आदि।

अनैच्छिक कार्य वह होते हैं जिन्हें हम अपनी इच्छा से नहीं करते और जिनके लिए हमें सोचना नहीं पड़ता है मस्तिष्क उन्हें स्वेच्छा से कर लेता है जैसे- हृदय का धड़कना, पाचन आदि।

“मस्तिष्क की कुल क्षमता यानी ऐच्छिक कार्य करने की और अनैच्छिक कार्य करने की क्षमता मानसिक क्षमता कहलाती है”

(2-) संज्ञानात्मक क्षमता (Cognitive Capacity)-

मस्तिष्क की ऐच्छिक कार्यात्मकता की क्षमता को संज्ञानात्मक क्षमता कहते हैं। पियाजे इस क्षमता को संज्ञान (Cognition) नाम देते हैं।

ऐच्छिक कार्यात्मकता के लिए मस्तिष्क में जो प्रक्रियाएं चलती हैं पियाजे उन्हें संक्रियाएं (Operations) कहते हैं।

 (3-) बौद्धिक क्षमता (Intellectual Capacity)-

‘मानसिक क्षमता या संज्ञानात्मक क्षमता से प्राप्त कार्यात्मक शक्ति और गति’

बौद्धिक क्षमता का सीधा संबंध कार्यात्मकता से होता है हम अपनी मानसिक क्षमता या संज्ञानात्मक क्षमता का प्रयोग करते हुए किसी कार्य को कितने अच्छे से और कितनी गति से कर पाते हैं यह हमारी बौद्धिक क्षमता है। इस क्षमता को बुद्धि लब्धि कहते हैं।

संज्ञान क्या है? ( what is cognition? ) –

जैसा कि हम ऊपर समझ चुके हैं कि हमारे मस्तिष्क की ऐच्छिक कार्यात्मकता की क्षमता संज्ञान कहलाती है ।

ऐच्छिक कार्यात्मकता के लिए हमें दो चीजें चाहिए होती हैं इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं। मान लो आप शतरंज का खेल खेल रहे हैं शतरंज का खेल खेलने के लिए आपको दो चीजों की आवश्यकता होगी एक शतरंज के खेल के बारे में पूरा ज्ञान (Knowledge) कि शतरंज को कैसे खेलते हैं घोड़ा कैसे चाल चलता है वजीर कैसे चाल चलता है। दूसरा आपके पास होना चाहिए तर्क (Logic) , विश्लेषण (Analysis) , समालोचनात्मक चिंतन ( critical thinking) , कल्पना ( Imagination) आदि जैसी मानसिक प्रक्रियाएं। तभी आप सही से शतरंज खेल पाएंगे।

यानी हमारा संज्ञान दो चीजों से मिलकर बनता है –

(1-) ज्ञान संरचनाएं ( Knowledge Structures)

(2-) मानसिक प्रक्रियाएं ( Mental Process)

पियाजे ज्ञान संरचनाओं को नाम देते हैं स्कीमा ( Schema)

और हमारे मस्तिष्क में चलने वाली मानसिक प्रक्रियाओं को नाम देते हैं संक्रियाएं ( Operations)

संक्रियाएं क्या है ? ( what is operations? ) –

किसी भी कार्य को करते वक्त हमारे मस्तिष्क में जो मानसिक प्रक्रियाएं चलती हैं उन्हें पियाजे संक्रिया कहते हैं। जैसे – चिंतन, तर्क, कल्पना , विश्लेषण , संश्लेषण, सृजनात्मक, समस्या समाधान , अंतर करना, तुलना करना आदि।

स्कीम क्या है? ( what is schema)-

  • अर्जित सूचनाओं को क्रियात्मकता हेतु सूचनाओं की श्रृंखला के रूप में व्यवस्थित करना
  • स्कीमा सूचनाओं को ज्ञान संरचना के रूप में व्यवस्थित करने का एक तरीका है अतः स्कीमा को जगत से संबंधित ज्ञान की इकाई समझा जा सकता है

हमारा मस्तिष्क जब किसी कार्य को सीखता है तो उससे संबंधित सूचनाओं को एक निश्चित क्रम में ज्ञान संरचनाओं के रूप में व्यवस्थित कर लेता है ताकि उसी कार्य को दोबारा करने पर उन सूचनाओं को आसानी से प्राप्त किया जा सके।

  • इन्हीं ज्ञान संरचनाओं को पियाजे स्कीमा कहते हैं।
  • स्कीमा जन्मजात भी होता है तथा साथ में अर्जित भी किया जा सकता है स्कीमा में परिवर्तन होते रहते हैं।

जन्म के समय भी कुछ स्कीमा बच्चों के दिमाग में होते हैं तभी तो बच्चा रोना दूध पीना जन्म के साथ ही जानता है सभी मूल प्रवृत्तियां भी बच्चों के पास होती हैं यानी स्कीम जन्मजात भी होता है।

स्कीमा हमें क्या Power देता है- 

स्कीमा व्यक्ति को जगत या वास्तविकता के मानसिक निरूपण के लिए सक्षम बनाता है यानी जिन चीजों की स्कीमा हमारे दिमाग में पहले से होती है उनका चित्रण हम अपने मस्तिष्क में कर पाते हैं और जिन चीजों की स्कीमा हमारे दिमाग में नहीं होती है उनका चित्रण हम नहीं कर पाते हैं।

जैसे मैं कुछ शब्द लिखता हूं- Scorpio, Wakanda

इन दोनों शब्दों में स्कॉर्पियो शब्द को पढ़ते ही आपके दिमाग में स्कॉर्पियो की इमेज बन गई होगी पर वाकांडा शब्द को पढ़ने पर उन व्यक्तियों के दिमाग में ही इमेज बनी होगी जिन्होंने Marvel ki Movies देखी हैं। बाकी लोगों के दिमाग में कोई इमेज नहीं बनी होगी क्योंकि वाकांडा से संबंधित स्कीमा उनके दिमाग में नहीं था।

संज्ञानात्मक विकास क्या है? (What is cognitive development) –Jean Piaget Theory in Hindi , Cognitive development

संज्ञानात्मक विकास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है

(1-) संज्ञान (Cognition)

(2-) विकास (Development) 

जैसा कि हम ऊपर समझ चुके हैं कि संज्ञान दो चीजों से मिलकर बनता है मानसिक प्रक्रियाएं (संक्रियाएं) और ज्ञान संरचनाएं (स्कीमा) । और विकास को हम पहले से ही जानते हैं अगर विकास को एक शब्द में डिफाइन करना हो तो वह शब्द होगा ‘परिवर्तन’ यानी गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तन।

अर्थात संज्ञानात्मक विकास क्या हुआ संज्ञान में होने वाला गुणात्मक और मात्रात्मक परिवर्तन । संज्ञान में संक्रियाएं गुणात्मक होती हैं और स्कीमा मात्रात्मक होता है। इसको हम इस तरीके से समझ सकते हैं-

संक्रियाएं क्या है- चिंतन तर्क कल्पना इनको हम गिन तो सकते नहीं है इनकी संख्या नहीं बढ़ती घटती बल्कि उनकी Quality बढ़ती है। यानी सक्रियों में होने वाला परिवर्तन गुणात्मक परिवर्तन है। स्कीमा छोटा या बड़ा हो सकता है उसमें उपस्थित सूचनाओं कम ज्यादा हो सकती हैं यानी स्कीमा मात्रात्मक है और उसमें होने वाले परिवर्तन भी मात्रात्मक है।

अब हम संज्ञानात्मक विकास की परिभाषा बनाने की कोशिश करते हैं “ संज्ञानात्मक विकास मानसिक प्रक्रियाओं (अर्थात गुणात्मक परिवर्तनों ) तथा स्कीमा (अर्थात मात्रात्मक परिवर्तनों) का प्रगतिशील व्यवस्थापन (Organisation ),पुनर्गठन (Restructuring ), वृद्धि (Increment) है”

पियाजे ने अपना सिद्धांत दो हिस्सों में बांट कर दिया-

(1-) स्कीमा का व्यवस्थापन पुनर्गठन और वृद्धि- Knowledge Construction Theory (part-3 मैं पड़ेंगे)

(2-) संक्रियाओं का व्यवस्थापन पुनर्गठन और वृद्धि– Stage theory of cognitive development (part-4 मैं पड़ेंगे)

नन्हे -वयस्क अवधारणा –

पियाजे के अनुसार, “ बालक की चिंतन प्रक्रिया वयस्कों के समान है परंतु यह गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से भिन्न होती है”

इसको सही से समझते हैं- पियाजे कहते हैं कि बालको और वयस्कों दोनों का चिंतन करने का तरीका समान होता है दोनों सूचना प्रक्रमण करते हैं । पर उनका चिंतन गुणात्मक रूप से वयस्कों से अलग होता है क्योंकि वयस्कों की सभी संक्रिया डेवलप हो चुकी होती हैं और बच्चों की सभी संक्रियाएं अभी डेवलप नहीं हुई है। मात्रात्मक रूप से भिन्न होता है क्योंकि वयस्कों के स्कीमा काफी बड़े और संख्या में ज्यादा होते हैं क्योंकि उन्होंने ज्यादा दुनिया देखी है।

सारांश Jean Piaget Theory in Hindi (part-2) में हमने संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development) और उससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण शब्दावलियों जैसे- मानसिक क्षमता(Mental capacity), संज्ञानात्मक क्षमता (Cognitive capacity), बौद्धिक क्षमता (Intellectual capacity) ,संज्ञान (cognition), स्कीमा (schema) , संक्रियाएं (Operations) , नन्हे वयस्क अवधारणा आदि को विस्तार से समझा ।  Jean Piaget Theory in hindi (Part-3) मैं हम ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया और उससे संबंधित पियाजे के द्वारा दी गई शब्दावलियों को समझेंगे।

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