थार्नडाइक का सिद्धांत (Thorndike ka siddhant)| सीखने के नियम

सभी पाठकों को मेरा नमस्कार आज की इस पोस्ट थार्नडाइक का सिद्धांत (Thorndike ka siddhant) के माध्यम से हम थार्नडाइक का सामान्य परिचय, अधिगम सिद्धांत, सीखने के नियम, थार्नडाइक के सिद्धांत का शैक्षिक महत्व को विस्तार से समझेंगे। इससे पहले हम अधिगम क्या है? और अधिगम के सिद्धांतों का वर्गीकरण पर दो पोस्टों के माध्यम से विस्तार से चर्चा कर चुके हैं पहले आप उन पोस्टों को पढ़ें। Thorndike ka siddhant

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थार्नडाइक का सामान्य परिचय-

ई० एल० थार्नडाइक (Edward Lee Thorndike) संयुक्त राज्य अमेरिका के एक शिक्षा मनोवैज्ञानिक थे। इन्होंने एक महत्वपूर्ण अधिगम सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। थार्नडाइक ने सीखने के सिद्धांत का प्रतिपादन 1898 में अपनी पीएचडी के शोध प्रबंध के दौरान पशुओं के व्यवहार का अध्ययन कर किया। इनके शोध का शीर्षक ‘एनिमल इंटेलिजेंस’ था। बाद में उनकी पुस्तक ‘शिक्षा मनोविज्ञान’ में इस सिद्धांत को दुनिया मे प्रसिद्धि मिली। थार्नडाइक ने अपना संपूर्ण जीवन एक शिक्षक के रूप में बिताया। यह पहले ऐसे मनोवैज्ञानिक हैं जिन्होंने पशुओं पर अध्ययन किया इसलिए इन्हें पशु मनोविज्ञान का जनक भी कहा जाता है।

थार्नडाइक को प्रथम शैक्षिक मनोवैज्ञानिक माना जाता है क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में अधिगम (सीखने) के नियम सबसे पहले थार्नडाइक ने दिए। टालमैन कहते हैं कि थार्नडाइक का सिद्धांत इतना वैज्ञानिक था कि सबने इसको आरंभिक बिंदु (Starting point) मान लिया।

थार्नडाइक प्रकार्यवादी संप्रदाय से संबंधित थे लेकिन जब मनोविज्ञान में व्यवहार का विज्ञान आया तब वह व्यवहारवाद के साथ जुड़ गए थे।

थार्नडाइक का शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में योगदान-

  • थार्नडाइक ने बहु कारक बुद्धि सिद्धांत दिया। 
  • सीखने के नियम दिए
  • प्रयास एवं त्रुटि का अधिगम सिद्धांत दिया
  • अधिगम स्थानांतरण का सामान अवयव/समरूप तत्व सिद्धांत दिया
  • चिंतन तथा कल्पना के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण सूक्ष्म विचारक, प्रत्यक्ष विचारक, स्थूल विचारक के रूप में किया। 

थार्नडाइक का सिद्धांत (Thorndike ka siddhant) के अन्य नाम-

  1. उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धांत (Stimulus – Response Theory)
  2. उत्तेजना प्रतिक्रिया सिद्धांत
  3. एस० आर० सिद्धांत (S-R Theory)
  4. प्रयास और त्रुटि का सिद्धांत (Trial and Error Theory)
  5. प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत
  6. संबंधवाद का सिद्धांत
  7. संयोजनवादी सिद्धांत
  8. अधिगम का बंध सिद्धांत (Bond Theory of Learning)
  9. आवृत्ति एवं चयन का सिद्धांत
  10. सफल प्रतिक्रियाओं को चुनने का सिद्धांत

थार्नडाइक का प्रयोग- 

थार्नडाइक का सिद्धांतथार्नडाइक ने एक पजल बॉक्स बनाया। जो एक पिंजरा था जिसके अंदर एक लीवर लगा हुआ था। उस लीवर को दबाने पर ही पिंजरे का दरवाजा खुलता था। थार्नडाइक ने इस बॉक्स में एक भूखी बिल्ली को बंद किया। बिल्ली पिंजरे में शांत बैठी थी। जिससे थार्नडाइक ने निष्कर्ष निकला कि इस दुनिया में कोई भी अनुक्रिया/ प्रतिक्रिया/(Response) तब तक नहीं होता जब तक कोई उद्दीपक (Stimulus) नहीं होता। बिल्ली भूखी जरूर है, बेचैन जरूर है लेकिन उसके सामने कोई उद्दीपक नहीं है इसलिए वह शांत बैठी है। 

अब थार्नडाइक बिल्ली के लिए पिंजरे के बाहर एक प्लेट में मछली (भोजन) रखते हैं। मछली बिल्ली के लिए उद्दीपक है बिल्ली जैसे ही उद्दीपक को देखती हैं तो प्रतिक्रिया करती है। बिल्ली ने जैसे ही मछली को देखा उसने कुछ सोचा नहीं वह सीधा ही मछली पर कूद पड़ी। जिससे थार्नडाइक ने निष्कर्ष निकला की कोई पशु हो या कोई व्यक्ति हो सबसे पहली अनुक्रिया/ प्रतिक्रिया शारीरिक/ गमक होती है।

बिल्ली ने छलांग लगाई और वह गिर गई। बिल्ली ने बार-बार कूदना, उछल-कूद करना, खरोचना जारी रखा। बिल्ली की उछल-कूद उसके प्रयास/ प्रयत्न/(Trials) है पर वे सब बेकार है यानी वे बिल्ली की त्रुटियां/भूल/(Errors) हैं। ऐसा करते-करते अचानक बिल्ली के शरीर का कोई हिस्सा लीवर पर पड़ा और दरवाजा खुल गया और बिल्ली को भोजन मिल गया।

जब इस प्रयोग को बार-बार दोहराया गया तो एक खास बात सामने आई कि बिल्ली द्वारा पिंजरा खोलने के लिए किए गए प्रयासों की संख्या प्रयोगो के साथ-साथ घटती जा रही थी। यानी बिल्ली द्वारा की जाने वाली गलतियां कम होती जा रही हैं और एक समय ऐसा आता है की बिल्ली बिना किसी गलती के एक ही प्रयास में पिंजरा खोल लेती है। यानी अब बिल्ली ने दरवाजा खोलना सीख लिया है।

थार्नडाइक ने उद्दीपक एवं अनुक्रिया के बीच संबंध को सीखने (अधिगम) का आधार माना। उन्होंने अपने सिद्धांत में सीखने के कुछ नियम भी बताएं। थार्नडाइक ने सीखने के नियमों को दो भागों में बांटा मुख्य नियम और गौण नियम। 

थार्नडाइक के सीखने के नियम (Thorndike’s Law of learning) –

थार्नडाइक ने अपने अधिगम सिद्धांत में सीखने के नियम दिए उन्होंने इन सीखने के नियमों को दो भागों में बांटा प्राथमिक/ मुख्य नियम और गौण/ द्वितीयक नियम। मुख्य नियमों की संख्या 3 है और गोद नियमों की संख्या 5 है।

मुख्य / प्राथमिक नियम (Primary laws)-

  1. तत्परता का नियम (Law of Readiness) 
  2. अभ्यास का नियम (Law of Exercise) 
  3. प्रभाव का नियम (Law of Effect) 

(1) तत्परता का नियम (Law of Readiness) –

तत्परता के नियम को तैयारी का नियम भी कहा जाता है। आप एक घोड़े को तालाब तक ले जा तो सकते हो पर क्या आप उसे पानी पिला सकते हो? उत्तर है नहीं घोड़ा जब तक पानी पीना नहीं चाहेंगा तब तक आप उसे पानी नहीं पिला सकते। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति किसी विषय वस्तु को तब तक नहीं सीख सकता जब तक वह उस विषय वस्तु को सीखने के लिए तैयार ना हो।

उद्दीपक और अनुक्रिया के मध्य आबंधन या अधिगम तभी संभव है जब अधिगम कर्ता इसके लिए अभिप्रेरित या तत्पर हो।

Note- वुडवर्थ ने तत्परता के नियम को मानसिक प्रवृत्ति (Mental set) का नियम कहा। यानी वुडवर्थ के अनुसार तैयार होने का मतलब मानसिक रूप से तैयार होना है।

(2) अभ्यास का नियम (Law of Exercise) –

यदि समान उद्दीपक के लिए बार-बार सफल प्रयास किए जाते हैं तो उस उद्दीपक के लिए समान अनुक्रिया के होने की संभावना बढ़ जाती है अंततः एक प्रयास में ही सफल अनुक्रिया प्राप्त कर ली जाती है।

उद्दीपक और अनुक्रिया के मध्य यदि बार-बार अभ्यास की पुर्नवृत्ति की जाती है तो इन दोनों के मध्य बनने वाला अनुबंध मजबूत होता है और यदि अभ्यास की कमी होती है तो अनुबंध कमजोर होता जाता है।

थार्नडाइक ने 1930 में अभ्यास के नियम में संशोधन किये। थार्नडाइक ने अभ्यास के नियम में संशोधन करते हुए कहा की प्राणी सभी अनुक्रियाओं को दो भागों में बांटता है उपयोगी और अनुपयोगी अनुक्रियाएं। वह अनुपयोगी अनुक्रियाओं को फिर से नहीं दोहराता है, उपयोगी अनुक्रियाओं को ही दोहराता है। इसीलिए अभ्यास के नियम को उपयोग व अनुपयोग का नियम भी कहा जाता है।

(3) प्रभाव का नियम (Law of Effect)-

इस नियम के अनुसार प्राणी को अनुक्रिया करने के बाद में किस प्रकार के परिणाम की प्राप्ति होती है अधिगम उस पर निर्भर करता है। यदि परिणाम सुखद या संतोष जनक है तो अनुबंध मजबूत होगा और यदि परिणाम दुखद या असंतोष जनक है तो अनुबंध कमजोर होगा। इस नियम को परिणाम का नियम भी कहा जाता है। प्रभाव के नियम को संतोष व असंतोष का नियम भी कहा जाता है।

ऐसे कार्य जिससे प्राणी को सकारात्मक पुनर्बलन (पुरस्कार या प्रशंसा) की प्राप्त होती है प्राणी उस कार्य को आसानी से सीख लेता है और जिन कार्यों से प्राणी को नकारात्मक पुनर्बलन (दंड या भय) की प्राप्ति होती है प्राणी उस कार्य से दूर भागता है।

थार्नडाइक ऐसे पहले मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने इस नियम के जरिए सीखने में पहली बार पुनर्बलन की बात की। बाद में स्किनर ने अपने क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत में थार्नडाइक के प्रभाव के नियम को अपने सिद्धांत का आधार बनायाथार्नडाइक पुरस्कार/पुनर्बलन को सिखाने में महत्वपूर्ण मानने वाले प्रथम मनोवैज्ञानिक हैं।

थार्नडाइक द्वारा सीखने के नियमों में किए गए संशोधन

 दिसंबर 1929 न्यू हैवंस USA में मनोवैज्ञानिकों का एक सम्मेलन हुआ जिसमें थार्नडाइक ने अपने अधिगम सिद्धांत को प्रस्तुत किया। इस सम्मेलन में थार्नडाइक के अभ्यास के नियम पर सवाल उठाए गये। लोगों ने अभ्यास के नियम पर सवाल उठाते हुए कहा कि आपके अनुसार तीनों मुख्य नियम बराबर महत्वपूर्ण है पर बिल्ली पर किए गए आपके प्रयोग में बिल्ली ने बहुत सारी गलत अनुक्रियाएं भी की थी यानी उसने गलत अनुक्रियाओं का भी अभ्यास किया फिर उसने सही अनुक्रिया को ही क्यों सीखा अभ्यास तो उसने गलत अनुक्रियाओं का भी किया था। 

थार्नडाइक ने अपनी गलती को स्वीकारा और अपने सिद्धांत में कुछ परिवर्तन किये। थार्नडाइक ने अभ्यास के नियम के महत्व को कम किया और प्रभाव के नियम के महत्व को बढ़ाया। क्योंकि बिल्ली ने अनुक्रियाएं तो बहुत सारी की थी पर उसने इस अनुक्रिया को सिखा जिसका परिणाम सुखद था।

थार्नडाइक ने अभ्यास के नियम में संशोधन करते हुए कहा की प्राणी सभी अनुक्रियाओं को दो भागों में बांटता है उपयोगी और अनुपयोगी अनुक्रियाएं। वह अनुपयोगी अनुक्रियाओं को फिर से नहीं दोहराता है, उपयोगी अनुक्रियाओं को ही दोहराता है। इसीलिए अभ्यास के नियम को उपयोग व अनुपयोग का नियम भी कहा जाता है।

प्रभाव के नियम में थार्नडाइक ने कहा था कि जब प्राणी को सुखद परिणाम मिलते हैं तो वह सीखने में प्रभावी भूमिका निभाएंगे यदि परिणाम सुखद नहीं है तो वो भी सीखने में भूमिका निभाते हैं। 1930 में इस नियम में संशोधन करते हुए थार्नडाइक ने दंड के महत्व को कम कर दिया और कहा दुखद परिणाम (दण्ड) सीखने में कोई भूमिका नहीं निभाता हैं। यानी प्रभाव/परिणाम तो महत्वपूर्ण है लेकिन दंड का प्रभाव सीखने में महत्वपूर्ण नहीं है। इसे संशोधित प्रभाव का नियम (Revised Law of Effect) कहा जाता है। 

Note– संशोधन के बाद प्रभाव के नियम की महत्ता बढ़ गई और अभ्यास के नियम एवं दण्ड की महत्ता कम हो गई। 

गौण/ द्वितीयक नियम (Secondary Laws) – 

थार्नडाइक ने सीखने के 5 गौण नियम दिए है। इन नियमों के एक से अधिक नाम होने के कारण काफी कंफ्यूजन रहती है इसलिए मैं इनके प्रयोग होने वाले सभी नामो को लिखने का प्रयास कर रहा हूं जिन्हें आप ध्यान से पढ़ना और याद रखनारखना क्योंकि ज्यादातर प्रश्न उनके नाम से ही आते हैं।

(1) बहु अनुक्रिया का नियम (Law of multiple Response) 

इस नियम के अनुसार जब हम कोई नई चीज़ सीखने का प्रयास करते हैं तो हम बहुत सारी अनुक्रियाएं (प्रयास) करते हैं सफलता न मिलने पर व्यक्ति उसी अनुक्रिया को नहीं दोहराता बल्कि नई-नई अनुक्रियाएं करता है। इनमें से जो अनुक्रिया सफल होती है उसे व्यक्ति अपना लेता है बाकी को नजरअंदाज कर देता है। इसे ही प्रयास एवं त्रुटि या बहु अनुक्रिया का नियम कहते हैं।

अतः शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों को किसी कार्य को सिखाते समय उन्हें अनुक्रियाएं करने के बहुत सारे अवसर दें जिससे वे स्वयं अपने अनुभवों से सही अनुक्रिया को खोज सकें।

(2) आंशिक क्रिया का नियम/ तत्व प्रबलता का नियम (Law of partial Activity/ Law of Prepotency Elements) 

इस नियम के अनुसार सीखते समय व्यक्ति उन तत्वों के प्रति चयनात्मक रूप से प्रतिक्रिया करता है जो सीखने के लिए महत्वपूर्ण और सहायक होते हैं और उन तत्वों की उपेक्षा करता है जो सीखने के लिए अप्रसांगिक या गैर आवश्यक होते हैं।

(3) साहचर्य परिवर्तन का नियम (law of Associative Shifting) 

उद्दीपक और अनुक्रिया के मध्य अनुबंध हो जाने के बाद यदि उस उद्दीपक के साथ किसी अन्य उद्दीपक को जोड़ दिया जाए तो यह अनुक्रिया भी धीरे-धीरे उस दूसरे उद्दीपक से अनुबंधित हो जाती है। इसे ही साहचर्य परिवर्तन का नियम कहते हैं। जानवरों को ट्रेनिंग इसी सिद्धांत के आधार पर दी जाती है।

उदाहरण के लिए आप किसी कुत्ते को ऊपर उछाल कर भोजन करते हैं। कुत्ता भोजन के लिए ऊपर उछलता है यानी भोजन के साथ उछलने की क्रिया का अनुबंधन हो चुका है। यदि आप भोजन कराते समय जंप (jump) बोलना शुरू कर दें तो धीरे-धीरे जंप शब्द के साथ भी उछलने की क्रिया का अनुबंध हो जायेगा और बिना भोजन के भी जंप बोलने पर कुत्ता उछालेगा।

(4) मनोवृति का नियम / दृष्टिकोण का नियम/ मानसिक विन्यास का नियम (Law of Attitude/ Law of Mental set) 

इस नियम से अभिप्राय है कि जिस कार्य के प्रति व्यक्ति की जैसी मनोवृति या मानसिक वृति होती है, उसी अनुपात में वह उस कार्य को सीखता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यदि व्यक्ति मानसिक रूप से कार्य करने के लिए तैयार नहीं है तो वह उस कार्य को सफलता से नहीं कर पाएगा। इसीलिए शिक्षकों को चाहिए कि वे किसी भी विषय वस्तु को पढ़ाने से पहले छात्रों के अंदर उस विषय वस्तु के प्रति रुचि को जागृत करें और उन्हें सीखने के लिए अभिप्रेरित करें।

(5) आत्मीकरण का नियम (Law of Assimilation)/ पूर्व अनुभवों का नियम/ सादृश्यता का नियम (Law of Analogy) 

थार्नडाइक कहते हैं कि हमने कोई चीज सीख ली उसके बाद में हम कोई दूसरी चीज सीखे तो पहले सीखी गई चीज और बाद में सीखी जा रही चीज में जो तत्व समान है तो उनको व्यक्ति जल्दी आत्मसात कर लेता है। यानि समान तत्व दूसरी चीज को सीखने की गति को बढ़ा देते हैं।  

थार्नडाइक के अनुसार नवीन ज्ञान में पूर्व अनुभव तभी सहायक होते हैं जब दोनों में समान तत्व (Identical Elements) हो।

शिक्षकों को चाहिए कि वे शिक्षण कार्य कराते समय बच्चों के पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ते हुए शिक्षण कार्य करवाएं।

Note- थार्नडाइक ने इसी नियम के आधार पर अधिगम अंतरण (Transfer of Learning) का प्रसिद्ध नियम ‘समान तत्वों का सिद्धांत’ प्रतिपादित किया।

थार्नडाइक के सिद्धांत का शैक्षिक महत्व-

(1) कक्षा शिक्षण में-

  • छात्रों को नवीन ज्ञान के लिए तत्पर करना (तत्परता का नियम) 
  • छात्रों को पुरस्कार व प्रोत्साहन देना ( प्रभाव का नियम)
  • प्रश्नों के सही उत्तर तक पहुंच कर उन्हें संतोष का अनुभव कराना (प्रभाव का नियम)
  • कक्षा कार्य व गृह कार्य द्वारा पर्याप्त अभ्यास करना (अभ्यास का नियम)
  • छात्रों को शुद्ध उच्चारण सीखने में
  • गणित की मूलभूत संक्रियाएं सीखने में

(2) मानव गामक कौशल (Motor Skills) जैसे- तैरना, साइकिल चलाना सीखना, टाइपिंग सीखना, टाई की गांठ बांधना सीखना, शुद्ध उच्चारण सीखना आदि प्रयास एवं त्रुटि पर आधारित है। सभी प्रकार के गामक कौशलों को सीखने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है।

(3) थार्नडाइक का सिद्धांत करके सीखने पर आधारित है अतः छोटे स्तर के बालकों एवं मंदबुद्धि बालकों के लिए उपयोगी है।

(4) थार्नडाइक के सिद्धांत के अनुसार शिक्षार्थी का व्यवहार बाह्य पुनर्बलको से अधिक प्रभावित होता है आंतरिक प्रेरणा से कम। शिक्षकों को चाहिए की वे छात्रों को सही अनुक्रिया करने के लिए प्रेरित करें और यदि वे सही अनुक्रिया करते हैं तो उन्हें तुरंत पुरस्कार दें।

इस पोस्ट में हमने थार्नडाइक का सिद्धांत (Thorndike ka siddhant), सीखने के नियम, प्रयास एवं त्रुटि सिद्धांत का शैक्षिक महत्व, आदि को विस्तार से समझा। थार्नडाइक के सिद्धांत के बहुत से नाम है और सीखने के नियमों के भी अलग-अलग नाम है इसलिए इन नाम को बहुत ही ध्यान से याद रखने की आवश्यकता है इन नामो से ही प्रश्न पूछे जाते हैं। मेरे द्वारा लिखी जा रही पोस्टों से संबंधित प्रश्नों के लिए आप हमारे टेलीग्राम चैनल से जुड़ सकते हैं।

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