अधिगम क्या है? (Adhigam Kya Hai)|अधिगम का अर्थ, परिभाषाएं, विशेषताएं और प्रभावित करने वाले कारक

सभी पाठकों को मेरा नमस्कार! आज की इस पोस्ट ‘अधिगम क्या है? (Adhigam kya hai)’ के माध्यम से हम अधिगम का अर्थ, अधिगम क्या है?, अधिगम की परिभाषाएं, प्रकृति एवं विशेषताएं और अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझेंगे। मैंने इस पोस्ट में अधिगम को बहुत ही सरल भाषा में समझाने का प्रयास किया है तो ध्यान से इस पोस्ट को पढ़ें।Adhigam kya hai

अधिगम क्या है? (Adhigam kya hai) 

सामान्य बोलचाल की भाषा में हम इसे सीखना कहते हैं लेकिन मनोविज्ञान की भाषा में इसे अधिगम कहा जाता है। 

समान्य अर्थ में अधिगम व्यवहार में होने वाले वांछित परिवर्तनों को कहा जाता है परंतु व्यवहार में हुए सभी तरीके के परिवर्तनों को अधिगम नहीं कहा जा सकता है। व्यवहार में परिवर्तन थकान, दवा खाने, बीमारी, नींद, परिपक्वता आदि से भी हो सकते हैं परंतु ऐसे परिवर्तनों को अधिगम नहीं कहा जाता है। मनोविज्ञान में सीखने से तात्पर्य व्यवहार में आए सिर्फ उन्ही परिवर्तनों से होता है जो अभ्यास, प्रशिक्षण या अनुभव के पश्चात आते हैं। 

अर्थात हम कह सकते हैं कि, “ व्यक्ति के व्यवहार में अभ्यास, प्रशिक्षण और अनुभव के कारण आए अपेक्षाकृत स्थाई परिवर्तन को अधिगम कहते हैं।” 

क्योंकि थकान, दवा खाने, बीमारी, नींद आदि की वजह से व्यवहार में आया परिवर्तन स्थाई नहीं होता है इसलिए उसे अधिगम नहीं कहा जा सकता तथा परिपक्वता के कारण व्यवहार में आया परिवर्तन भी अधिगम नहीं कहलाता है क्योंकि परिपक्वता उम्र के साथ आती ही आती है उसे हम सीखें या ना सीखें।

सामान्य शब्दों में अधिगम एक मानसिक प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति अपने वातावरण से ज्ञान ग्रहण कर अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है।

Adhigam kya hai

परिपक्वता- परिपक्वता वे जन्मजात/अंतर्निहित विशेषताएं हैं जो जन्म के साथ ही व्यक्ति में उपस्थित होती हैं और समय/ उम्र के साथ सामने उभरकर आती हैं। परिपक्वता का संबंध आनुवंशिकता से होता है।

परिपक्वता के कारण व्यवहार में आए परिवर्तन अधिगम नहीं कहलाते हैं परंतु परिपक्वता अधिगम को प्रभावित अवश्य करती है। परिपक्वता और अधिगम के बीच संबंध को हम किसी अन्य पोस्ट के माध्यम से विस्तार से समझेंगे।

अधिगम क्या है?अधिगम क्या नहीं है? 
व्यवहार में अपेक्षाकृत स्थाई परिवर्तनव्यवहार में अस्थाई परिवर्तन
यदि अपेक्षाकृत स्थाई परिवर्तन ऑप्शन में न हो तो स्थाई परिवर्तन है।परिपक्वता के कारण होने वाले परिवर्तन
अभ्यास, प्रशिक्षण और अनुभव के कारण व्यवहार में आए परिवर्तनबीमारी, थकान, नशा, औषधि, नींद के कारण होने वाले परिवर्तन

 

अधिगम की परिभाषाएं-

(1) जे० पी० गिल्फोर्ड- “ व्यवहार से उत्पन्न व्यवहारगत परिवर्तन ही अधिगम है”

अर्थात सीखना व्यवहार में एक परिवर्तन है जो पिछले व्यवहार या अनुभव के फलस्वरुप आता है। उदाहरण के लिए बच्चे का जब जन्म होता है तो वह रोता है यह एक व्यवहार है। रोने पर उसे दूध मिलता है और वह बाद में जब-जब रोया तब-तब उसे दूध मिला बच्चा सीख गया की रोने से दूध मिलता है। बच्चे का शुरू में रोना उसका व्यवहार था जब बच्चा जान गया की रोने से दूध मिलता है तब उसका रोना व्यवहारगत परिवर्तन था। अर्थात दूध के लिए रोना सिखाना है।

(2) गेट्स एवं अन्य- “अनुभव (Experience) तथा प्रशिक्षण (Training) द्वारा होने वाला व्यवहारगत परिवर्तन ही अधिगम है।”

गिलफोर्ड ने व्यवहारगत परिवर्तन का आधार व्यवहार को ही बताया पर गेट्स एवं अन्य ने व्यवहारगत परिवर्तन का आधार अनुभव तथा प्रशिक्षण को बताया। 

(3) क्रो एण्ड क्रो- “सीखना आदतों(habits), ज्ञान (knowledge) और अभिवृत्तियों (attitudes) का अर्जन (acquisition) है।”

(4) गार्डनर मर्फी- “सीखना व्यवहार अथवा दृष्टिकोण में परिमार्जन (modification) है।”

(5) वुडवर्थ –

  • अधिगम विकास की एक प्रक्रिया है। 
  • नवीन ज्ञान एवं नवीन प्रक्रियाओं का अर्जन अधिगम कहलाता है। 
  • सीखना नवीन ज्ञान की प्रक्रिया। 
  • किसी नई बात को जान लेना ही सीखना है। 

यह सभी कथन वुडवर्थ के हैं और अलग-अलग परीक्षाओं में पूछे गए हैं इन सब के शब्द अलग है पर कॉन्सेप्ट एक ही है। 

नोट- मनोविज्ञान में दो स्किनर है एक वह जिन्होंने क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत दिया यानी बी० एफ० स्किनर (बियूरस फ्रेडरिक स्किनर) और दूसरे चार्ल्स सी० ई० स्किनर (Charles Edward Skinner) इन दोनों मनोवैज्ञानिकों ने अपनी अपनी अधिगम की परिभाषा दी है। 

(6) सी० ई० स्किनर- “अधिगम तथ्यों एवं सूचनाओं का यांत्रिक प्रस्तुतीकरण नहीं बल्कि इसके आगे भी कुछ है।”

यानी सीखना यह नहीं है कि जितना बताया गया उतना सीख लिया बल्कि सीखना अपनी तरफ से कुछ ना कुछ नया जोड़ना है। यानी सीखना रटना नहीं बल्कि समझना है। 

(7) बी० एफ० स्किनर- “ अधिगम व्यवहार में उत्तरोत्तर अनुकूलन की प्रक्रिया है। ”

(8) आईजेंक- “अधिगम नवीन एवं स्थाई परिवर्तन के अंतर्गत सीखने की प्रक्रिया है।”

(9) हिलगार्ड- “अधिगम वह प्रक्रिया है जिसमें किसी नई क्रिया का जन्म होता है या सामने आई हुई परिस्थिति के अनुकूल उसमें परिवर्तन किया जाता है।”

अधिगम की प्रकृति एवं विशेषताएं-

  1. अधिगम एक सतत प्रक्रिया (continuous process) है- यानी अधिगम जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है व्यक्ति अपने जन्म से मृत्यु तक लगातार कुछ ना कुछ सीखता रहता है। 
  2. अधिगम व्यवहार में परिवर्तन है- अधिगम व्यवहार में वांछित और अपेक्षाकृत स्थाई परिवर्तन है। व्यक्ति अपने और दूसरों के अनुभवों से सीख कर अपने व्यवहार विचारों इच्छाओं और भावनाओं में परिवर्तन करता है।
  3. अधिगम सार्वभौमिक (Universal) है- अधिगम को काल, समय और परिस्थिति से बांध नहीं सकते हैं। अधिगम संसार में प्रत्येक जगह ( कक्षा में भी और कक्षा के बाहर भी) सभी मनुष्यों,सभी जीवधारियों में होता है।
  4. अधिगम व्यक्तिगत तथा सामाजिक दोनों है- यानी अधिगम व्यक्ति के अंदर भी चलता है और समाज के साथ भी। वाइगोत्सकी अपने अधिगम सिद्धांत में दो तरीके का अधिगम बताते हैं। अंत: वैयक्तिक अधिगम जो बालक के अंदर चलता है और अंर्त-वैयक्तिक अधिगम जो समाज में होता है। 
  5.  सीखना सकारात्मक और नकारात्मक दोनों है-सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति उचित और अनुचित दोनों तरीके की बातें सीख सकता है। अधिगम सकारात्मक हो या नकारात्मक समाज के सापेक्ष होता है। यानी किसी चीज को किसी समाज में नकारात्मक माना जा सकता है और उसी चीज को किसी दूसरे समाज में सकारात्मक मनाया जा सकता है।
  6. अधिगम एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है- अधिगम उद्देश्य पूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रबल होता है सीखने की क्रिया उतनी अधिक तीव्र होती है उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है।
  7. अधिगम एक विवेक पूर्ण प्रक्रिया है- सीखना यांत्रिक कार्य के बजाय एक विवेकपूर्ण कार्य है। उस बात को शीघ्रता से और सरलता से सीखा जा सकता है जिसमें बुद्ध या विवेक का प्रयोग किया जाता है बिना सोचे समझे किसी बात को सिखाना मुश्किल है।
  8. अधिगम समस्या समाधान की प्रक्रिया है
  9. अधिगम एक सक्रिय प्रक्रिया है
  10. अधिगम ज्ञानात्मक भावात्मक और क्रियात्मक प्रक्रिया है
  11. अधिगम समायोजन/अनुकूलन की प्रक्रिया है
  12. अधिगम सक्रिय, जटिल और रचनात्मक प्रक्रिया है
  13. अधिगम अनुभवों का संगठन है
  14. अधिगम अनुभव द्वारा अर्थ निर्माण की प्रक्रिया है
  15. अधिगम वर्तुलाकर (spiral) है
  16. अधिगम का स्थानांतरण किया जा सकता है
  17. अधिगम एक प्रक्रिया है न कि प्रक्रिया का एक उत्पाद

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक-

आपने कई बार अनुभव किया होगा कि कोई काम आसानी से सीख लिया जाता है और कुछ कार्य नहीं। यह भी देखा जाता है कि कुछ लोग तैराकी, खाना बनाना, वाहन चलाना आसानी से सीख लेते हैं और कुछ लोग नहीं। ऐसा क्यों होता है? कि कुछ लोग जल्दी सीख रहे हैं और कुछ देरी से सीख रहे हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऐसे बहुत सारे कारक होते हैं जो अधिगम को प्रभावित करते हैं इनमें से कुछ कारकों की चर्चा मैं यहां करता हूं।

(1) अभिप्रेरणा (Motivation)- 

अभिप्रेरणा अधिगम का चालक इंजन है। अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि यदि शिक्षार्थी विषय को सीखने के लिए स्वयं ही अभिप्रेरित है या शिक्षकों के विशेष प्रयास से अभिप्रेरित कर दिए गए हैं तो वह जटिल से जटिल पाठ को तीव्रता से सीख लेते हैं। अभिप्रेरणा की कमी से अधिगम की गति काफी धीमी हो जाती है। अभिप्रेरणा अधिगम को सर्वाधिक प्रभावित करती है। स्किनर ने अभिप्रेरणा को अधिगम का राजमार्ग कहा है।

(2) इच्छा शक्ति (willpower)-

यदि छात्रों में किसी बात को सीखने की दृढ़ इच्छा शक्ति होती है तो वह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उसे सीख लेते है। अतः छात्रों की इच्छा शक्ति को दृढ़ बनाने के लिए शिक्षक को छात्रों में लक्ष्य के प्रति रुचि और जिज्ञासा को जागृत करना चाहिए।

(3) शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य-

जो छात्र शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं वे सीखने में रुचि लेते हैं और किसी भी चीज को शीघ्रता से सीख लेते हैं। इसके विपरीत जो छात्र शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होते हैं वह किसी भी विषय में रुचि नहीं ले पाते हैं, अपने ध्यान को एक जगह केंद्रित नहीं करपाते और देरी से सीखते हैं।

(4) संवेग (Emotions)-

जब बच्चे संवेगिक रूप से स्थिर होते हैं तो वह सर्वाधिक सीखते हैं। संवेगिक तनाव एवं चिंता की स्थिति में बालक शिक्षक वस्तु पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं और न ही बे विषय वस्तु में रुचि ले पाते हैं वही संवेगिक तनाव एवं चिंता से मुक्त बालक विषय वस्तु की सार्थकता को समझते हैं और उस पर ध्यान केंद्रित करके उसे आसानी से आत्मसात कर पाते हैं।

नकारात्मक संवेग अधिगम की गति को घटा देते हैं और सकारात्मक संवेग अधिगम की गति को बढ़ा देते हैं। जैसे कि यदि विषय वस्तु के प्रति छात्रों में आनंद का संवेग जागृत होता है तो वह उस विषय वस्तु को आसानी से सीख लेते हैं वहीं पर यदि भय का संवेग जागृत होता है तो वह उस विषय से दूर भागते हैं।

(5) थकान (Fatigue)-

थकान अधिगम की गति और गुणवत्ता को कम कर देती है। इसलिए छात्रों को विषय वस्तु को छोटे-छोटे भागों में बांटकर पढ़ना चाहिए और समय-समय पर उन्हें खेलने, बातें करने, अन्य गतिविधियों के अवसर भी देना चाहिए।

(6) रुचि (Intrest)-

छात्र जिन विषयों में रुचि लेते हैं उन्हें वे आसानी से सीख लेते हैं और जिन विषयों में वे रुचि नहीं लेते हैं उन्हें सीखने में वे अधिक समय लेते हैं। अतः शिक्षकों को चाहिए कि वह किसी विषय वस्तु को पढ़ने से पहले कुछ ऐसी रोचक गतिविधियां करवाये जिससे छात्रों में उस विषय वस्तु के प्रति रुचि जागृत हो सके।

(7) अवधान (Attention)-

छात्र जिस वस्तु पर जितना अधिक ध्यान केंद्रित कर पाते हैं वो उस वस्तु को उतनी ही तीव्रता से और गहराई से समझ पाते हैं। अवधान और रुचि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अतः किसी विषय वस्तु के प्रति छात्रों के अवधान को बढ़ाने के लिए छात्रों में उस विषय वस्तु के प्रति रुचि जागृत करनी पड़ेगी।

(8) आयु / परिपक्वता (Maturity)-

प्रत्येक प्रक्रिया को सीखने के लिए शिक्षार्थियों में परिपक्वन के एक निश्चित स्तर का होना अनिवार्य है। जैसे यदि कोई विद्यार्थी वर्णमाला के अक्षरों को लिखना सीख रहा है तो इसके लिए यह आवश्यक है कि उसके हाथ की उंगलियां इतनी परिपक्व हो की पेंसिल को ठीक ढंग से पकड़ सकें। ऐसे ही हम किसी विद्यार्थी को किसी विषय की अमूर्त अवधारणाओं के बारे में तभी सीखा सकते हैं जब वह संज्ञानात्मक रूप से इतना परिपक्व हो चुका हो कि वह  अमूर्त चिंतन कर पाने मे सक्षम हो।

(9) तत्परता (Readiness)-

अधिगम तभी होगा जब व्यक्ति सीखने के लिए तत्पर होगा। उधर के लिए घोड़ा तभी पानी पिएगा जब वह प्यासा होगा आप उसे पानी के पास कितना भी ले जाएं पर वह पानी नहीं पिएगा। इसी तरह अधिगम तब होगा जब अधिगम करता उसे विषय वस्तु को सीखने के लिए तैयार होगा।

(10) वातावरण (Environment)

यदि कक्षा का वातावरण अच्छा नहीं होगा तो अधिगम की गुणवत्ता में कमी आती है। सोरयुक्त वातावरण वातावरण बच्चों को ध्यान केंद्रित करने में समस्या उत्पन्न करता है। कक्षा का वातावरण स्वच्छ, आरामदायक, और शिक्षण अधिगम सामग्री से युक्त होना चाहिए। कक्षा का वातावरण ऐसा हो जिसमें बच्चों को परस्पर संवाद के अवसर दिए जाएं, बच्चों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तथा बच्चों को समूह में सीखने /गतिविधियां करने के अवसर दिए जाएं। कक्षा का वातावरण लोकतांत्रिक हो।

(11)अधिगम की विधि (Learning method) 

अधिगम की विधि का संबंध छात्र और विषय दोनों से होता है। यानी अधिगम की विधि का चयन छात्रों की रुचि, परिपक्वता स्तर और कक्षा की व्यक्तिक भिन्नताओं तथा अधिगम की विषय वस्तु को ध्यान में रखकर करना चाहिए। यह विधि जितनी ही अधिक रुचिकर और उपयुक्त होती है सीखना उतना ही आसान हो जाता है।

इस पोस्ट में हमने अधिगम क्या है (Adhigam kya hai) अधिगम की परिभाषाएं, अधिगम की प्रकृति एवं विशेषताएं और अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझा। इससे आगे की पोस्टो में हम अधिगम के प्रकार, अधिगम की विधियां और अधिगम के सिद्धांतों को बहुत सारी पोस्टों के माध्यम से ऐसे ही विस्तार से समझेंगे।

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